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पर्युषण-प्रवचन
मनुष्य दीपक नहीं है, सूर्य है ! दीपक भी प्रकाश जरूर करता है, किन्तु उसका प्रकाश सदा पराश्रित रहता है । साधनों की पूर्णता हुए बिना वह प्रकाश नहीं फैला सकता । जब तेल बाती मिलेगा और हवा के झोंके न लहराएँ ऐसी जगह मिलेगी तभी वह प्रकाश दे सकता है । हवा का एक झोंका, या तेल का अभाव उसके प्रकाश को गुल कर सकता है । इस प्रकार दीपक का प्रकाश स्वआश्रित नहीं है, किन्तु सूर्य को इन सब सहारों की अपेक्षा नहीं होती, वह किसी का सहयोग और संरक्षण प्राप्त करके जलने का वादा नहीं करता, किन्तु उसके अन्तर में असीम प्रकाश पुंज भरा होता है, वह स्वतन्त्र रुप से सर्वत्र और सदा बिखरता रहता है । दीपक में जहाँ स्वतः प्रकाशित होने की क्षमता भी नहीं है, और न ही संघर्षों से जूझने की शक्ति भी, वहाँ सूर्य सदा स्वयं प्रकाश फैलाता है और हर संघर्ष और तूफान का सामना करके विजयी होता है । इसीलिए सूर्य अनन्त काल से हर घड़ी नियत समय पर जलता रहा है ।
भारत के दर्शन जैन और वेदान्त, मनुष्य को यही महत्वपूर्ण सन्देश देता है कि तु दीपक नहीं है कि तुझे बाहर के साधनों और संरक्षणों की जरूरत हो । यदि कोई कहे कि मैं गरीब हूँ, नंगी जमीन पर गुजारा करता हूँ, फटे हाल रहता हूँ, मैं कुछ भी क्या कर सकता हूँ ? यदि महलों में रहता, सोने के झूलनों में झूलता और साधन एवं संरक्षण प्राप्त होता तो मैं भी कुछ करके दिखाता तो मानना चाहिए उसका आत्म-विश्वास मूर्छित हो रहा है, ऐसा व्यक्ति संसार के सामने सिर्फ परिस्थितियों का रोना रोने के सिवाय और कुछ भी नहीं कर पाता । इस प्रकार अपने अन्तर में अनन्त शक्तियों का भंडार रखकर भी आधी से ज्यादा मानव जाति विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने में पस्त हिम्मत होती है । ऐसे मनुष्यों ने श्रीकृष्ण का जीवन सुना और पढ़ा जरूर होगा लेकिन समझा नहीं है । वे मालाएँ जरूर फेरते होंगे, किंतु श्रीकृष्ण के विराट रूप की झाँकी नहीं देख पाए हैं ।
श्रीकृष्ण जब गर्भ में भी नहीं थे, तभी उनकी मौत की शर्ते तय की जा चुकी थीं और मौत की घाटियाँ तैयार थीं। उस अंधकार और भीषण चक्रवात से भी वह बाहर निकला । जब वह ग्वालों और चरवाहों में घूमता तो उसे कौन-सी विद्यालय और महाविद्यालय की शिक्षा मिली थी ? परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि जो तेजस्वी है, अंधकार से लड़ने
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