________________
पर्युषण-प्रवचन
पर्युषण पर्व हमारे सामने एक महत्त्वपूर्ण सन्देश लेकर आया है कि मनुष्य तू इस संसार में रह रहा है । तेरा जीवन इन संसार की यात्राओं में चल रहा है । जब तू संसार में यात्रा करने के लिए निकला, साधु बनकर या श्रावक बन कर चला, लेकिन मार्ग में आने वाले शूलों और कँटीले झाड़-झखाड़ों से तुम्हारा यह जीवन छिद गया है । साल भर की यात्रा के बाद, आज इस पर्युषण पर्व पर तुझे कुछ देर के लिए अपनी यात्रा का जोश रोककर पिछली यात्रा के बारे में सोचना चाहिए, आलोचना करनी चाहिए । अपने मन के विकारों को छाँटकर मन को साफ करना चाहिए । सम्भव है यह काँटा कभी माता-पिता के साथ संघर्ष होने में लग गया हो, अपने भाई-बन्धुओं के साथ संघर्ष में राग और द्वेष का कोई काँटा लगा हो, पति-पत्नी के आपसी संघर्ष में घृणा, वैर या क्रोध का काँटा लगा हो, अपने किसी साथी, पड़ौसी या संसार के अन्य किसी प्राणी के साथ लड़ाई झगड़े या वैमनस्य में हिंसा, चोरी, राग, द्वेष का काँटा लग गया हो, मन में कोई पापाचरण का काँटा या दोष लगा हो तो आज शान्ति के साथ बैठकर सोचो । उन काँटों को निकाल कर बाहर करो और अपने मन को निर्मल बना लो । यदि आपने जातीयता या खानदान की दृष्टि से या ज्ञान, ध्यान, त्याग, वैराग्य के क्षेत्र में अपने आपको ऊँचा समझते हुए, दूसरों को छोटा समझकर मन में अहंकार का काँटा चुभा लिया है, धार्मिक क्षेत्र में सामायिक, साधना, दान, तप की आराधना के समय, ज्ञान के संसार में, व्यापार में जो भी शूल मानस में प्रविष्ट हुए हैं, आज का दिन उन्हें दूर करने के लिए है । कल के सूर्य से आपकी आगे की मंजिल की, अगले वर्ष की यात्रा प्रारम्भ हो रही है । चाहे आप किसी भी क्षेत्र में रहें, पर अपनी इस यात्रा के लिए पूरी तैयारी करें, सावधान बनें, जो भूलें पहले हो गई हैं, उन्हें यहीं समाप्त कर दें और आगे के लिए उन्हें न दोहराने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर लें । इस प्रकार जीवन की उस महान् मंजिल को, उस परमात्म-पद को पाने के लिए हमें आगे बढ़ना है और उस परमलक्ष्य को प्राप्त करना है । जो इस लक्ष्य को प्राप्त करेगा, उसे जीवन में आनन्द, मंगल, सुख-शान्ति और प्रेम की लहरें प्राप्त होंगी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org