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क्रान्तिकारी महापुरुष : श्रीकृष्ण
प्राप्त करना चाहता है, पर कृष्ण को कौन-सी अनुकूल परिस्थितियाँ मिली थीं ? क्या उन्होंने राज-महल में जन्म लिया था ? क्या उन्हें चारों ओर स्वतन्त्रता का वातावरण मिला था ? नहीं । फिर भी उन्होंने समाज के लिए, देश के लिए और विश्व के लिए ऐसे-ऐसे काम किए, जिन्हें याद कर के हृदय प्रसन्नता से भर जाता है । जेल में जन्म लेकर, कंस की आसुरी ताकत के सिकंजे के नीचे रहकर भी उन्होंने ऐसा पुरुषार्थ किया, जिससे उस जेल की दीवारें टूट पड़ीं । कंस की आसुरी शक्तियाँ भी छिन्न-भिन्न हो गयीं । जैसे आग की एक चिनगारी घास के ऊँचे ढेर को भी भस्मसात कर देती है, उसी तरह श्रीकृष्ण के पराक्रम के एक शोले ने कंस की राक्षसी वृत्तियों को जला डाला । श्रीकृष्ण के सामने प्रतिकूल परिस्थितियों का पहाड़ खड़ा था, उन्हें दबाने के लिए चारों ओर से प्रयत्न किया जा रहा था, पर श्रीकृष्ण अन्याय और क्रूरता के पहाड़ को ढहाने के लिए पिल पड़े और अपने मिशन में कामयाब हुए । उन्होंने मानव को नूया मार्ग दिखाया । ऐसा मार्ग जो सुख, स्वतन्त्रता और आत्म-विकास के मंजिल तक जाने वाला था । यही कारण है कि आज हजारों वर्षों के बाद भी हम उस महापुरुष की पावन चरित्र - गाथा को याद करते हैं । इनके सद्गुणों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प करते हैं, उनके सदुपदेशों को घर-घर और जन-जन तक पहुँचने का प्रयत्न करते हैं ।
भारतीय संस्कृति का स्थायित्व
इस बीच में हमारे यहाँ विदेशी आक्रान्ताओं के हमले भी हुए कितने ही प्रकार की संस्कृतियाँ आईं और या तो यहाँ के जीवन में जज्ब हो गयी या वापिस चली गयीं । विदेशी शासकों ने अपने स्वार्थ के लिए शताब्दियों तक हम पर शासन किया । हमारे भाग्य का फैसला पक्षपात पूर्ण तरीकों से होता रहा । कई बार ऐसा प्रतीत हुआ कि भारतवर्ष की आत्मा मर चुकी है । पर आज हम देख रहे हैं कि वे क्रूर शक्तियाँ सब कुछ करने के बाद भी आखिर टिक नहीं पायीं । समाप्त हो गयीं । आज उन बड़े-बड़े सम्राटों को कोई याद तक नहीं करता । लेकिन श्रीकृष्ण जैसे महापुरुष आज भी दीपस्तम्भ की तरह अडिग खड़े रहकर सामाजिक और मानसिक अन्धकार का विनाश कर रहे हैं । भयानक से भयानक तूफान भी श्रीकृष्ण की यशोगाथा का दीपक नहीं बुझा सके । हमने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, किन्तु अपने महापुरुषों को नहीं भुलाया ।
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