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वैराग्य मूर्ति : गौतम कुमार
था कोणिक । इतिहासकार कोणिक को अजात शत्रु भी लिखते हैं । कोणिक भगवान महावीर का परम भक्त एवं उपासक था । कोणिक के जीवन के विषय में आगमों में अनेक स्थलों पर अनेक प्रकार के वर्णन उपलब्ध होते हैं । मैं आपसे कह रहा था कि अजात शत्रु कोणिक श्रमणों का उपासक और भक्त था । अवसर मिलने पर उनका उपदेश सुनता था । ____एक बार एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विहार करते हुए आर्य सुधर्मा अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ चम्पा नगरी में पधारे । वे चम्पा नगरी के पूर्ण भद्र चैत्य उपवन में विराजित हुए । नगर की जनता में यह समाचार बिजली की तेजी से फैल गया और हजारों लोग उनके दर्शन के लिए और उनकी मधुर वाणी को सुनने के लिए आने जाने लगे । एक दिन अवसर पाकर अन्तेवासी आर्य जम्बू अपने सद्गुरु सुधर्मा के चरणों में उपस्थित होकर बोले । जम्बू की जिज्ञासा
"भदन्त ! भगवान महावीर की द्वादशांग वाणी में से सप्तम अंग उपासक दशा का उपदेश मैंने आपसे सुना । उसके दिव्य भावों को मैंने ग्रहण कर लिया । परन्तु अब मैं आपसे अष्टम अंग अन्तकृत् के विषय में जानना चाहता हूँ । अर्हन्त यावत् मोक्ष को संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अष्टम अंग की उपदेशना किस प्रकार दी है और उसमें क्या
आर्य सुधर्मा ने कहा-"वत्स ! मोक्ष को संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अष्टम अंग सूत्र अन्तकृत् दशा के अष्ट वर्ग प्रतिपादित किए हैं । प्रत्येक वर्ग के अलग-अलग अध्ययन कहे हैं । प्रत्येक अध्ययन में एक-एक महान साधक आत्मा के जीवन का सुन्दर एवं मधुर वर्णन किया गया है । अन्तकृत् सूत्र के प्रथम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं-गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, स्थिमित, अचल, कम्पिल्य, अक्षोभ, प्रसेन और विष्णु ।" अन्तकृत् सूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का वर्णन इस प्रकार है । द्वारिका नगरी ___ अन्तकृत् सूत्र में नेमि-युग के और महावीर-युग के साधकों के जीवन
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