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पर्युषण-प्रवचन
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शेष अध्ययन ___ गौतमकुमार की जीवन-गाथा सुनने के बाद आर्य जम्बू ने आर्य सुधर्मा से विनय के साथ निवेदन किया-"गुरुदेव ! आपने अन्तकृत सूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का जो वर्णन किया, वह मैंने सुनकर ग्रहण कर लिया । उसके शेष अध्ययनों का क्या भाव है ? वह भी सुनना चाहता हूँ ।" आर्य सुधर्मा ने जम्बू की जिज्ञासा के उत्तर में कहा___ "वत्स ! अन्तकृत सूत्र के प्रथम वर्ग के दस अध्ययनों में से प्रथम अध्ययन का वर्णन मैंने तुझे विस्तार से बतला दिया । शेष नव अध्ययनों का वर्णन गौतमकुमार के समान ही है । सबके पिता का नाम अन्धक वृष्णि और माता का नाम धारिणी है । समुद्र, सागर, गम्भीर, स्थिमित, अचल, काम्पिल्य, अक्षोभ, प्रसेन और विष्णुकुमार का जीवन वर्णन भी गौतम कुमार जैसा ही समझना चाहिए । ये सब द्वारिका के रहने वाले थे । सब यादव जाति के थे । सबने भगवान अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ली, तपस्या की, साधना की आत्मा की, और अन्त में सबने शत्रुजय पर्वत पर संथारा किया, कैवल्य प्राप्त किया एवं अन्त में समस्त कर्मों का अन्त करके मोक्ष प्राप्त किया, जन्म-मरण का अन्त किया ।" श्रमणत्व भाव का, साधना का लक्ष्य है-आत्म-कल्याण, आत्म-विकास और आत्म-विशुद्धि । शास्त्र में कहा है-“समयाए समणो होइ ।" समता की साधना से ही सच्चा श्रमण होता है और वही मोक्ष प्राप्त करता है । यादव जाति
अभी मैं यादव जाति के राजकुमारों की बात कह रहा था । भारतीय इतिहास की यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है कि यादव जाति का प्रारम्भ इस ब्रजभूमि में ही हुआ । परन्तु वैदिक और जैन दोनों ही कथाकार लिखते हैं कि यादव जाति ब्रज से सौराष्ट्र की ओर प्रयाण कर गई । सवाल है कि यह कैसे हुआ और क्यों हुआ ? इतने यादव सौराष्ट्र में क्यों चले गये । वहाँ उनका वैभव और ऐश्वर्य कैसे फैला ? जब यादव ब्रजभूमि में रह रहे थे, तब श्रीकृष्ण के हाथों कंस का वध हो गया था। कंस एक आसुरी शक्ति का प्रतीक था । कंस जरासन्ध का जमाता था । उस युग में जरासन्ध के पास अपार बल था । जरासन्ध को कंस के वध का पता लगा तो उसने ब्रजभूमि पर आक्रमण करने के लिए अपनी विशाल सेनाएँ भेज दी । इस स्थिति में श्रीकृष्ण ने यादव जाति के जितने
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