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पर्युषण-प्रवचन
था तो वह भी सच कह रहा है या झूठ ? कहिए ? अपनी-अपनी परिभाषा से तो सच ही कह रहे हैं बेचारे ! तो बस, यह अपनी-अपनी भूमिका की बात है, अपनी-अपनी अवस्था की और मंजिल की बात है । जिनकी मंजिल नीची है, जो जीवन की छोटी-छोटी मंजिलों पर ही घूम रहे हैं, जिनकी भूमिकाओं का विकास नहीं हुआ है, जो राग द्वेष को मोह-माया की, धन-वैभव की, संसार के स्वार्थों की भूमिका पर से गुजर रहे हैं, वे आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर नहीं पहुँचे हैं और इस जीवन के सम्बन्ध में भ्रान्तिपूर्ण बातें कर रहे हैं । पर आध्यात्मिक जीवन का वह विराट् सन्त अमर महापुरुष अपने जीवन की अनन्त ऊँचाइयों पर पहुँच कर संसार के प्राणियों को आवाज लगाकर कहता है- " संसार में भटकने वाले प्राणियो ! जीवन की ऊँचाई पर आओ, अध्यात्म की अनन्त दिव्य शक्ति तुम्हें प्राप्त होगी । अहिंसा और सत्य को लक्ष्य करके आगे बढ़ो । इस समता में, सामायिक में कितनी मधुरता, कितना मिठास है ! इस आध्यात्मिक जीवन की साधना में कितना आनन्द है, यह मैं तुम्हें कैसे बताऊँ ? जब तक तुम स्वयं आगे नहीं बढ़ोगे तब तक आगे की मंजिल प्राप्त नहीं कर सकोगे । आध्यात्मिक ऊँचाई पर पहुँचे बिना सामायिक का आनन्द कैसे मिलेगा ? आप सामायिक करते हैं । कोई पूछे कि आपको वह आनन्द प्राप्त हुआ ? आप कहेंगे कि प्राप्त नहीं हुआ । तप में भी आनन्द नहीं मिला । आप आध्यात्मिक जीवन और साधना की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं पर कुछ पाया है आपने कुछ भी नहीं । इस समस्या का हल कैसे हो ? जब तक नीचे वाला चींटा, नीची भूमिका पर रहने वाला हमारा साथी आगे बढ़कर प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ. न करे, चिन्तन की गहराइयों और मनन की ऊँचाइयों को लेकर आगे न बढ़े, तब तक इस अमृत सागर का आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता ।
संसार का लाखों हजारों वर्ष का इतिहास आप पढ़ जाइए पर जैन धर्म के इस आध्यात्मिक पर्व के समान दूसरा पर्व आपको और कहीं नहीं मिलेगा । कहीं तलवार की पूजा का पर्व होता है, कहीं लक्ष्मी पूजा का पर्व मनाया जाता है, कहीं खाने पीने और मौज-मजे उड़ाने का पर्व आता है तो कहीं शरीर की पूजा करने का पर्व होता है । लेकिन मैं कह रहा था कि यह वह पर्व है, जो इन सबसे ऊपर उठा है । शरीर और इन्द्रियों से ऊपर उठा है, तलवार, लक्ष्मी पूजा, संसार के भौतिक ऐश्वर्य और विलासों से भी आगे बढ़ गया है । यह आत्मा का पर्व है । आत्मा
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