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पर्युषण पर्व
नहीं है ! संसार के काम-भोग के दल-दल में कीड़ा बनकर पड़े रहने के लिए नहीं है । यह अमूल्य मानव-जीवन संसार की गली-कूंचों में फिरते हुए शूकर- कूकर की तरह बिता देने के लिए नहीं है । यह जीवन संसार के क्षण-भंगुर भोगों के लिए नहीं है, बल्कि यह तो किसी उच्चतम आदर्श के लिए है ! संसार की वासना, कामना और माया से युद्ध करके — परम पवित्र बनकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बन जाने के लिए है ! विश्वास करो, तुम में भी वही शक्ति विद्यमान है, जो ऋषभ देव में थी, जो नेमिनाथ में थी, जो पार्श्वनाथ में थी और जो महावीर में थी । आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है । महापुरुष बनने की शक्ति प्रत्येक आत्मा में है । पर साधना के बिना यह सब कैसे हो ? कुछ लोग कहते हैं—— - 'महापुरुष बनाए नहीं जाते, वे तो जन्म-जात होते हैं ।' कुछ कहते हैं— 'जन्म से कोई महापुरुष नहीं होता, वह साधना से बनता है ।' कुछ कहते हैं— 'महापुरुष न जन्म से होता है, न साधना से बनता है, वह तो भक्तों के द्वारा बनाया जाता है ।' मेरे विचार में इन तीनों विकल्पों में से बीच का विकल्प ही सबसे सुन्दर है । महापुरुष न तो बनाया जा सकता है और न जन्म-जात ही होता है । जो साधना करता है, वही महापुरुष बन सकता है । आत्मा जब तीर्थंकर बनता है, तो वह उसकी साधना का ही फल है । आत्मा में शक्ति अनन्त है । परन्तु वह प्रसुप्त पड़ी है, उसे जागृत करने की देर है । ज्यों ही आत्मा जागृत होती है, त्यों ही उसमें सिद्धत्व प्रकट होने लगता है । शव से शिव बन जाता है । इस शव में ही शिवत्व प्रकट करने की कला को 'साधना' कहते हैं ।
आज के इन पर्व - दिनों में, पर्युषण पर्व में और इस अठाई पर्व में महापुरुषों की जीवन गाथाएँ आप भक्ति, प्रेम तथा श्रद्धा के साथ में सुनते हैं । आप उन्हें प्रति वर्ष क्यों सुनते हैं ? क्योंकि आपके जीवन को इन जीवन चरित्रों से प्रेरणा मिलती है, उत्साह मिलता है । आपका मुरझाया जीवन फिर से हरा-भरा बन जाता है । चित्त के विकारों को दूर करने के लिए आपको प्रकाश मिलता है । जिस प्रकार समुद्र में 'प्रकाश स्तम्भ' रहता है, जिसका प्रकाश आस-पास चारों ओर फैल जाता है, उसे देखकर दूर-दूर से आने-जाने वाले जहाज अपने लक्ष्य पर पहुँच जाते हैं । इधर-उधर भटकने से बच जाते हैं । चट्टानों से टकराने का भय नहीं रहता । ये सब लाभ हैं, उस 'प्रकाश स्तम्भ' के जो समुद्र में खड़ा अपना प्रकाश चारों ओर बिखेरता रहता है । बस, इसी प्रकार संसार के ये विराट पुरुष भी संसार - सागर के प्रकाश स्तम्भ हैं, जिन्हें
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