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पर्युषण-प्रवचन
बिजली बन गया । शरीर तो दोनों का वही था जो पहले था किन्तु स्थिति में फर्क आ गया । एक के मनोभाव बढ़े दूसरे के दुर्बल पड़े ! बस इसी कारण दोनों की पूर्व स्थिति में अन्तर आ गया । वास्तव में शक्ति का स्रोत शरीर मांस पिण्ड या रक्त नहीं है । शरीर का वजन दो चार पौण्ड या सेर दो सेर कम या अधिक हुआ तो क्या हुआ ? उसका कोई विशेष महत्तव नहीं है । शक्ति का स्रोत आत्मा है, और उसका बल मानव की महत्त्वपूर्ण उच्च भावनाओं में सम्मिलित रहता है । इसलिए हमें अपने स्वरूप को, अपने अतीत को, और अपने पूर्वजों को अपने प्रेरणा स्रोत बनाने चाहिए । उज्वल इतिहास ___ हमारा इतिहास बहुत ही गौरवोन्नत एवं उज्ज्वल रहा है यादव जाति का इतिहास, अरिष्टनेमि, राजुल, रहनेमि और गिरनार पर्वत की कथाएँ हमारे लिए दीप स्तम्भ के समान हैं । वहाँ से प्रेरणा मिलती है, वह शक्ति का स्रोत है और उत्साह एवं मनोबल को जगाकर आदर्श पद की ओर उन्मुख एवं उत्प्रेरित करता है । गिरनार की वे पर्वत मालाएँ, आज भी हमें गौरव मंडित सी दीख पड़ती है, रहनेमि और राजुल का वह ओजस्वी-संवाद गूंजता हुआ सा सुनाई दे रहा है ।
जब गिरनार पर्वत के सहस्राम्र वन में भगवान अरिष्टनेमि का समवसरण लगा था, तब उन्हीं का स्नेहानुरक्त भाई रहनेमि साम्राज्य, सुन्दरियों और भोग विलास का परित्याग करके गिरनार की गुफा में ध्यानस्थ खड़ा साधना में लीन हो रहा था । उसी समय राजुल, जो भगवान अरिष्टनेमि के दर्शनों के लिए जा रही थी, वर्षा से भीगती हुई उसी गुफा में प्रवेश करती है । राजुल को यह कल्पना भी नहीं थी कि यहाँ पर कोई अन्य भी है ? इसलिए निःसंकोच भाव से उसने अपने वस्त्रों को उतार कर निचोड़ना शुरू किया । उसी समय बिजली चमकती है और उसका प्रकाश सीधा गुफा में पड़ता है । रहनेमि का, जो वहीं ध्यानस्थ मुद्रा में खड़ा था, यकायक ध्यान भंग होता है । और सामने निर्वस्त्रा राजुल के तन पर उसकी दृष्टि पड़ती है । सचमुच एक बार उसकी आँखों में बिजली सी कोंध गई । राजुल के अपार लावण्य और सौन्दर्य को देखकर उसका मन बेकाबू हो गया और फिर यह एकान्त ! और उस पर निर्वस्त्रा नारी ! जैसे बन्दर को बिच्छू ने काट लिया हो
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