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पर्युषण-प्रवचन
हैं; तो क्यों हम उनके श्रीचरणों में त्याग, तपस्या, सेवा आदि का कोई न कोई सुगन्धित पुष्प अर्पण करें । हाँ, वह पुष्प झूठा और सूखा हुआ नहीं हो और न उसमें वासना, अनासक्ति, विकार, अभिमान, लोभ आदि की दुर्गन्ध एवं कीड़ा लचा हुआ हो । जब भी आप उनके श्रीचरणों में सेवा का पुष्प अर्पित करें तो उसमें से स्वार्थ और विकार के कीड़ों को निकाल दें। दान में भी अहंकार और स्वार्थ का कांटा नहीं होना चाहिए । वह पुष्प शुद्ध, सुगन्धयुक्त और परम पवित्र हो । उसकी मधुमय सौरभ से समाज, राष्ट्र और संसार का वातावरण सुरभित हो जाए और हजारों-हजारों जीवन सुगन्ध से महकते रहें ।
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