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पर्युषण पर्व की आराधना
के तूफानों में दबा हुआ जब ऊपर उभरता है तो मेरू पर्वत के शिखर को छूना प्रारम्भ कर देता है ।
इस पर्व के पीछे कुछ भावनाएँ हैं । आज छोटे-छोटे बच्चे एकासना माँगते हैं, कोई उपवास माँगते हैं । शरीर कितना कोमल है उन नन्हों मुन्नों का ! पर उनकी भावनाओं को देखने से पता चलता है कि शरीर से मन कहीं बड़ा है । वह देश भाग्यशाली है, जहाँ के बच्चों के शरीर में मन बड़ा होता है; वह समाज भाग्यशाली है, जिनके बच्चों का, नौजवानों का, बहनों का, माताओं का और बड़े बूढ़ों का मन से मन ऊँचा है । और जब तक मन ऊँचा है तब तक कोई आपत्ति नहीं, दुःख भी नहीं, क्लेश भी नहीं । अगर हमारी स्थिति इतनी उत्तम है, मन अगर तन से ऊँचा है, तो यह भी निश्चित है कि हम अपने जीवन के मर्म को स्पर्श कर सकेंगे । अच्छी तरह से कर सकेंगे । ____ हाँ, तो मैं कह रहा था कि पर्व आया है । पर्व आमतौर पर जब आते हैं तो खाने-पीने के लिए झगड़ा होता है । यह मैं खाऊँगा, यह मुझे दो, मुझे कम मिला, इसको ज्यादा मिल गया, बच्चों का एक हंगामा शुरू हो जाता है, लड़ाई और झगड़े शुरू हो जाते हैं, घर में एक तरह का तूफान आ जाता है पर्व के दिन । पर संसार में एक पर्व यह भी है जहाँ खाने के लिए झगड़े नहीं होते, भूखे रहने के लिए होड़ लगती है, तपस्या के लिए झगड़े होते हैं । बच्चा कहता है—मुझे एक उपवास करना है, दो उपवास करने हैं और पिता कहता है-नहीं भाई, नहीं । तुम नहीं कर सकोगे, जिद्द न करो, लो, ह रुपया ले लो और मान जाओ । रुपया दिखाया जा रहा है पर बा उसकी परवाह नहीं कर रहा है और उपवास के लिए संघर्ष शुरू हो जाता है । माताएँ और बहनें, पुत्रियों और पत्नियों में तपस्या की होड़ लग जाती है । भाइयों में भी होड़ लगती है और चल पड़ते हैं इस तरह आगे की ओर, महाप्रकाश की ओर, और मैं समझता हूँ कि यह एक शुभ चिह्न है । सभी इस ओर चलते हैं, उपवास करने के लिए संघर्ष करते हैं, धन मिलता है तो उसे ठुकरा सकते हैं, लक्ष्मी आती है तो उसे भी ठुकराते हैं, प्रेम और स्नेह भी इस क्षेत्र में उन्हें उपवास करने से वंचित नहीं कर सकते, क्रोध और भय का तो वहाँ कोई स्थान ही नहीं, उसे भी ठुकरा सकते हैं, पर करते हैं यह त्याग और तपस्या । हाँ, यह बात आप कह सकते हैं कि इसमें कुछ गड़बड़ी भी आ गई है और इसमें कुछ
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