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पर्युषण-प्रवचन
लौटना । कहाँ से वापस लौटना ? पाप से, दोष से और बुराई से । अपने मन की सौम्यता को प्रकट होने दीजिए । क्रूरता अपने आप नष्ट हो जाएगी । अपने मन की मृदुता को व्यक्त होने दीजिए । कठोरता स्वयं दूर हो जाएगी । अपने मन में सरलता का प्रवेश होने दीजिए । वक्रता स्वयं वहाँ से विदा हो जाएगी । मन में सबके प्रति प्रेम-भाव रखिए । फिर किसी के प्रति द्वेष हो ही नहीं सकेगा । मन में अभय की भावना आने दो ! मन में अद्वेष की भावना का प्रवेश होने दो ! मन में अखेद की भावना का संचार होने दो ! फिर देखिए, आप अपने जीवन का चमत्कार ! वह जीवन एक ऐसा जीवन होगा, जिसको सभी नमस्कार करेंगे ।
अध्यात्म-साधना का मस्त योगी सन्त आनन्दघन कहता है—
" आतम ज्ञानी श्रमण कहावे,
बीजा तो द्रव्य - लिंगी रे ।
वस्तुगते जे वस्तु- प्रकाशे;
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"
'आनन्दघन' मति संगी रे ||
यह
अध्यात्म - योगी सन्त कहता है, कि द्रव्य - साधना तो बहुत की है । परन्तु भाव - साधना के बिना जीवन का कल्याण नहीं हो सकता । अतः भाव-साधना करो । भाव - साधना कैसे हो ? इसके उत्तर में सन्त कहता है- 'आत्म-ज्ञान प्राप्त करो ।' आत्म-ज्ञान सबसे श्रेष्ठ एवं सबसे ज्येष्ठ है । जिसने अपनी साधना से आत्म-ज्ञान अधिगत कर लिया, वही श्रमण है, वही सच्चा साधक है ! आत्म-ज्ञानी का लक्षण है, कि जो वस्तु का वास्तविक रूप समझ गया है, जिसने पुद्गल को पुद्गल समझ लिया है, और चेतन को चेतन समझ लिया है । पर्युषण पर्व आपको इसी अध्यात्म-साधना की ओर ले जाने की बात कहता है । पर्युषण पर्व कहता है— 'तुम अपने-आपको परखो, अपने आपको पहचानो' ! अपने को पहचान लिया, तो फिर किसी अन्य को पहचानने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी । अपने को समझना ही कठिन है ।
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जीवन दुर्लभ है
पुण्य-योग से आपको मानव का जीवन मिल गया है । याद रखो; यह जीवन संसार में और संसार की अंधेरी गलियों में भटकने के लिए
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