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Xxxxxxxx परीषह-जयीxxxxxxx
खेल और खिलाड़ियों की सुविधा ,पढ़ाई के लिए श्रेष्ठ गुरूओं की नियुक्ति एवं क्रीड़ा हेतु जलाशय,वाया,संगीत नृत्य आदि की मनोहारी व्यवस्था कर दी गई।
बालक सुकुमाल ज्यों ज्यों उत्तरोत्तर वृद्धिगत होता गया त्यों -त्यों उसका रूप निखरता गया । वह सौन्दर्यशाली किशोर बन गया । उसकी मसें भीगने लगीं। किशोरवस्था से यौवन के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान की कलाओं में भी उसने उत्तरोत्तर प्रगति की ।
पुत्र की इस प्रगति से माँ का हृदय फूला न समाता । वह उसकी हर इच्छा को पढ़ लेती और कुमार व्यक्त करे उससे पूर्व पूर्ण कर देती । बस एक ही आशंका ....कहीं मुनि दर्शन न कर ले । यही एक शंका की कील उसके प्रसन्नता के फूलों को काट रहा था ।
यशोभद्रा की हवेली आज दुल्हन सी सजी थी । शहनाइयों के स्वर गूंज रहे थे । एक हप्ते से पूरे नगर के लोग मिष्ठान को आरोग रहे थे । पूरी हवेली ही नहीं पूरा नगर ही सजधजकर नई शोभा पा रहा था । हवेली में मेहमानों की चहलपहल थी । सेठजी के सभी सगे-संबंधी पधारे थे । सबकी पूरी आगता-स्वागत की जा रही थी।
आज तो जैसे पूरा नगर ही उमड़ पड़ा था । हर रास्ता ही हवेली की ओर मुड़ गया था । अवन्ती नरेश ,महारानी ,मंत्रीगण ,नगर के श्रेष्ठी ,विद्वान करि सभी का जमघट था । नृत्य हो रहे थे । फूलों की महक फैल रही थी ।
आज युवा सुकुमाल को विवाह के पवित्र रिश्तों में आबद्ध किया जा सका था। एक दो नहीं श्रेष्ठ सुकुमार, गुणज्ञ ,खानदानी बत्तीस पद्मीनि कन्याओं के सा उनका विवाह सम्पन्न हो रहा था । बत्तीस लक्षणों वाला सकुमाल बत्तीस सुकुमारियाँ का पति बन रहा था ।
बत्तीसों वधुएँ इन्द्रकी परी ही लग रही थी । उनका रूप,सज्जा देखकर स्वर्ग की अप्सरायें भी लजा रही थी । सचमुच कामदेव से सुकुमाल को बत्तीस रति ही मिल गई थीं।
सेठानी ने इन पुत्रवधुओं को विशाल पृथक्-पृथक् भवन बनवाये थे जो समस्त भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त थे । काम-क्रीड़ा को उत्तेजित करने वाला
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