Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

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Page 153
________________ XXXXXXXXपरीषह-जयीxxxxxx फव्वारे ही छूट रहे थे । लगता था कि रुधिर की नदी बह रही हो । हाथी ,घोड़ो के कटे हुए अंग बिखरे पड़े थे । घायलों की कराह तो तलवारों की टकराहट में दबी जा रही थी । युद्ध अपनी चरमसीमा पर लड़ा जा रहा था । दोनों ओर से नये-नये युद्धव्यूह रचे जा रहे थे । पराजय और विजय कभी गजकुमार की ओर तो कभी अपराजित की ओर झुक जाती । आज युद्ध का पन्द्रहवां दिन था। अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया था | गजकुमार ने आज विशेष युद्धव्यूह की रचना की । आज के युद्ध का नेतृत्व उसने स्वयं किया । रथपर सवार गजकुमार ऐसा सुशोभित हो रहा था कि मानों आकाश में सूर्य का रथ चल रहा हो । उसने अपराजित को ललकारा । दोनों ओर से भयानक घात-प्रतिघात होने लगे। आखिर संध्या से कुछक्षण पूर्व ही गजकुमार ने अपराजित को अपने कुछ युद्ध कौशल और वीरता से बन्दी बना लिया । अपराजित के बन्दी होते ही उसकी सेना में भगदड़ मच गई । उसके सैनिक निराश हो गये और शस्त्र त्याग दिए । इधर गजकुमार द्वारा अपराजित को बन्दी बनाये जाने का समाचार जानकर उसकी सेना का उत्साह अनेक गुना बढ़ गया । सैनिक प्रसन्नता से उछलने ,कूदने और नाचने लगे । विजय का तूर्यनाद बज उठा । गजकुमार अपराजित को बन्दी बनाकर द्वारिका की ओर लौटे । __राजकुमार ,गजकुमार अपराजित को पराजित कर बन्दी बनाकर लौट रहे है , यह समाचार राजभवन और पूरे नगर में बिजली की भांति फैल गया । महाराज ,महारानी अधिकारीगण और समस्त प्रजा अपने राजकुमार का स्वागत करने और पराजित शत्रु को देखने के लिए उमड़ पड़ी । महाराज ने पुत्र को गले से लगाया । माँ ने बेटे का माथा चूमा । नगर जनों ने हर्षोल्लास से अपनी प्रसन्नता व्यक्त की । विजयी सेना पर फूलों की वर्षा की गई । चारणों ने विरूदावली नायी। और सभी का सम्मान किया गया । महाराज ने विजित सैनिकों को पुरस्कार बांटे । मातृभूमि के लिए जो शहीद हो गए ,उनके परिवार को आश्वासन देकर उन्हें ? यथोचित्त धन राशि प्रदान की गई । पराजित अपराजेय को बन्दीगृह में डाल दिया गया । महाराज ने उसी समय राजकुमार गजकुमार को युवाराज पद पर आसीन करने की घोषणा की। इस शुभ निर्णय ने लोगों की प्रसन्नता को ओर भी बढ़ा दिया । वे गजकुमार की वीरता और राजा की सहृदयता की भूरी-भूरी प्रसंशा करने लगे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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