Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

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Page 155
________________ Android परीषह-जयीXXXXXXXX "एक चापलूस साथी ने सुरति सेठानी की रूप राशि का वर्णन करते हुए गजकुमार को उत्तेजित किया । "कौन है वह रूपागंना ? ''गजकुमार ने कामपीड़ित होकर पूछा । चापलूस साथियों ने सेठ पांसुल और उसकी पत्नी सुरति का पूरा विवरण प्रस्तुत किया । “लेकिन यह कैसे संभव है ? सेठ पांसुल नगर के प्रतिष्टित श्रेष्टी है । यदि यह भेद खुल गया और पिताजी के कानों तक यह बात पहुँची तो अनर्थ हो जाएगा । " गजकुमार ने शंका करते हुए कहा । “आप इसकी चिन्ता न करें । यह हम पर छोड़ दें । आज रात सुरति आपके शनयकक्ष में होगी । "एक साथी ने डींग मारते हुए कहा । . अर्ध रात्रि के समय तीन,चार लोग सशस्त्र पांसुल की हवेली पर पहुँचे , और उसे जान से मार डालने की धमकी देकर सुरति का अपहरण कर उसे गजकुमार के पास भेज दिया । सेठ पांसुल को यह भी धमकी दी गई कि यदि वह इस घटना को महाराज तक ले जाएगा तो उसे सुरति और अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ेगा। बेचारा पांसुल इन धमकियों से डर गया । वह क्रोध से कांप उठा । परन्तु राज्य सत्ता से टकराने की हिम्मत न होने से खून का यूंट पीकर रह गया । सुरति के साथ गजकुमार ने रातभर उसकी इच्छा के विरूद्ध उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर उसकी देह से खिलवाड़ किया । अबला नारी इस राक्षस के पंजो में निरीह पशु की तरह तड़फती रही । पांसुल का क्रोध धीरे-- धीरे बैरभाव में परिवर्तित होता रहा । . द्वारिका के उद्यान में आज स्वयं भगवान नेमिनाथ पधारे हैं । बलभद्र, वासुदेव आसपास के राजा सभी उनके दर्शनों को उमड़ पड़े थे । सभी भक्तिभाव से उनकी पूजा अर्चना कर रहे थे । सारा नगर ही नहीं पूरा प्रदेश ,तीर्थंकर प्रभु के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ा था । सम्पूर्ण वातावरण ही धर्ममय हो गया था । प्रकृति में भी वासन्ती उल्लास फैल गया था । विशाल जनसमूह को भगवान की Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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