Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

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Page 158
________________ - परीषह-जयी Xxxxxxxxx जब तुमने पश्चाताप कर लिया तो फिर पाप कैसा ? " पिताने समझाया । “हाँ बेटा तुम्हारे पिताजी ठीक कह रहे हैं । अभी तुम्हारी उम्र भी क्या है ? हम शीघ्र तुम्हारा ब्याह रचाने का विचार कर रहे हैं । " माँ ने गजकुमार को वात्सल्य से समझाया । . “नहीं माँ अब ब्याह की बात ही न सोचें । मैंने छोटी सी उम्र में जो पाप किए हैं उनका जन्म जन्मान्तर में धुलना कठिन है । वही उम्र तपस्या की सही उम्र है । फिर भगवान नेमीनाथ को ही देखें । यौवन में ही वे केवली हो गये हैं। बस अब आप मुझे मोह के बंधन में न बांधे । '' हाथ जोड़कर गजकुमार ने प्रार्थना की । ___ “बेटा तप की उम्र तो मेरी है | तुम यह राज्य सम्हालो, योग्य समय पर गृह त्याग करना ।" "पिताजी अब यह संभव नहीं । "कहते-कहते गजकुमार ने पिता के चरण पकड़ लिए। राजा वासुदेव ने पुत्र को उठाकर छाती से लगाया | माँ ने मस्तकपर दुलार से हाथ फेरा और मौन स्वीकृति ही दे सकी । गला और आँखें दोनों भर गये थे। गजकुमार दीक्षा ले रहे हैं - यह समाचार पूरे राज्य में द्रुतगति से फैल गया । जिसने भी सुना आश्चर्य में डूब गया । गजकुमार के मित्र तो इसे मजाक समझ कर हँसी उड़ाने लगे । __“देखा सौ चहे खाकर बिल्ली तीर्थ करने निकली है।" "लगता है कि लड़कियाँ फँसाने का नया मार्ग ढूँढ़ रहा है । " मित्रों ने अपने ढंग से सोचा । वे सभी चापलूस, कामी मित्र शीघ्र गजकुमार के पास आये। पर यह क्या गजकुमार को देखते ही उनका भाव ही बदलने लगा ! गजकुमार के चेहरे की गंभीरता ,आँखों की करुणा,व्यवहार की नम्रता ने उनके मुख ही बंद कर दिए । वे तो सोचकर आये थे कि उसकी खिंचाई करेंगे । पर, यहाँ तो उनके बोल ही रूक गये । “बेटा तुम्ही अपने मित्र को समझाओ । इसे क्या हो गया है । इस कच्ची उम्र में दीक्षा लेने की जिद्द कर रहा है । हम तो इसका विवाह करके पुत्रवधु और पौत्रों का सुख देखना चाहते हैं । " माँ ने गजकुमार के त्रिों से अपनी व्यथा कह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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