Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

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Page 154
________________ xxxrxrkiपरीषह-जयीxxxxxxxx युद्ध के विजय ने गजकुमार में आत्मश्लाघा के भाव भर दिए । युवराज पद ने उसे कछ विशेष अधिकार प्राप्त होने से अहमवादी भी बना दिया । चाटुकारमित्रों ने उसकी इन स्वच्छन्द वृत्तियों में घी का कामकर उन्हें और भी भड़का दिया । सुशील गजकुमार पद, प्रतिष्ठा और सम्मान को स्वस्थता से ग्रहण न कर सका, और वह स्वच्छन्दता के प्रवाह में बहने लगा | उसमें दुराचारी मित्रों के बहकाने के कारण काम वासनाओं की ज्वालायें भड़कने लगीं। गजकुमार का अनुराग दिन-प्रतिदिन स्त्रियों की ओर विशेषकर युवा कन्याओं की ओर अधिक बढ़ने लगा । इस कार्य में उसके दुराचारी मित्रों ने उसका भरपूर साथ दिया । राजकुमार ने युवराज पद की आड़ में अधिकार के डंडे से और चापलूस साथियों की मदद से अपनी दुराचारी वृत्तियों को बेलगाम बना दिया । गजकुमार के आसपास व्याभिचारी और दुराचारियों का जमघट जुट गया। वे लोग इसी टोह में रहते कि किसकी लड़की जवान हुई है । किसकी खूबसूरत बहू है । वे लोग ऐसी युवतियों का बढ़ा चढ़ा कर रसपूर्ण शैली में रूपवर्णन करते, जिससे गजकुमार की वासनाएँ भड़क उठतीं । ऐसी कन्याओं , कुमारिकाओं और नववधुओं को फुसला कर या भय बताकर अपहरण किया जाता और वे गजकुमार के शयनकक्ष में पहुँचा दी जाती । गजकुमार का यह रोज का नियमित कार्य सा हो गया । ___अच्छे-अच्छे घरों की स्त्रियों की इज्जत और राजसत्ता के भय से वे विचारी उफ तक न कर पाती । अनेक स्त्रियाँ जीवन भर इस व्यथा को झेलती रहीं । जिस किसी पुरूष ने इस दुराचार को रोकने का थोड़ा भी प्रयत्न किया तो उसका नामोनिशान तक मिटाया जाने लगा । अब व्याभिविचार के साथ गजकुमार की ये हिंसक वृत्तियाँ भी बढ़ने लगी । पोदनपुर में सेठ पांसुल का भी बड़ा कारोबार था । पांसुल युवा व्यापारी था । उसकी पत्नी सुरति सचमुच रति का अवतार थी । “युवराज आज मैंने ऐसी कली को देखा है जिसके सामने तीनलोक की सुन्दरता भी लजा जाए । यदि वह आपकी अंकशयिनी न बनी तो सब बेकार है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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