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परीषह-जयी
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MARRIANATAHan
गजकुमार की कथा
“नगरजनों ध्यान से सुनो । जो भी बहादुर आक्रमणकारी शत्रु पोदन पुर के राजा अपराजित को परास्त कर, उसे कैद कर, महाराज के सामने उपस्थित करेगा । उसे महाराज वासुदेव मुँह मागा ईनाम देंगे । "पूरे नगर में राज्य की ओर से यह डौड़ी पिटवाई गई । सारे नगर में घर-घर हर व्यक्ति ने यह घोषणा सुनी । पिछले कई महीनों से पोदनपुर के राजा अपराजित ने द्वारिका को घेर रखा था । प्रजा जैसे अपने ही नगर में बन्दी थी । युवकों ने इस घोषणा को सुना। उनकी बाहें फड़कने लगी । परन्तु किसी को अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं हो रहा था । बड़े-बड़े योद्धा भी मात खा चुके थे ।
“पिताजी मैं अपराजित को पराजित करके आपके चरणों में डाल दूंगा।" विनय परन्तु दृढ़ता से स्वयं राजकुमार गजकुमार ने अपने पिता वासुदेव से प्रार्थना की ।
“बेटा अभी तुम किशोर हो । कम उम्र के हो इतनी बड़ी सेना से लड़ना खेल नहीं है ।" महाराज वासुदेव ने पुत्र को समझाया ।
“हाँ बेटा तुम्हारे पिताजी सच कह रहे हैं । अभी तुम्हारे युद्ध करने की नहीं बल्कि आनन्द मनाने के दिन हैं । अभी तुम कोमल बालक हो । " माता गन्धर्वसेना ने गजकुमार के मस्तक पर वात्सल्य से हाथ रख कर अश्रु पूर्ण नेत्रों से कहा ।
“पिताजी क्षत्रिय जन्म से ही लोहे का बना होता । जब शत्रु दरवाजे पर खड़ा हो , उस समय क्षत्रिय का धर्म होता है कि वह अपनी जान की बाजी लगाकर भी अपने राज्य और प्रजा की रक्षा करे । मैं दूध पीता बच्चा नहीं हूँ। पिताजी,आप उसी द्वारिका के अर्धचक्री महाराज हैं जिस कुल में भगवान नेमिनाथ और श्रीकृष्ण ने जन्म लिया । जिनके प्रताप को सुनकर शत्रुओं के चेहरे मुरझा जाते थे । और माँ आपको विदित है कि महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु मात्र सोलह वर्ष का किशोर था, जिसने कौरव सेना के छक्केछुड़ा दिये
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