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Xxxxxxxपरीषह-जयीXXXXXXX सुदर्शन के शरीर से कीमती आभूषण वस्त्र उतर रहे हैं । जैसे मोह और माया स्वयं तप के भय से भाग रहे है । लोगों ने देखा कि सौन्दर्य के प्रतीक केशों को सुदर्शन ने घास पूस की तरह उखाड़ दिए है । उपस्थित जन समुदाय की आँखें अश्रु की अर्घ्य चढ़ा रही थीं, और वाणी मुनि सुदर्शन की जय-जयकार से पवित्र हो रही थी । मुनि सुदर्शन महाव्रतों का कठोरता से पालन कर रहे थे । उन्हें जैसे अब देह का ध्यान ही नहीं था । उनका अधिकांश समय आत्मतिंन में ही जाता ।
मुनि सुदर्शन अनेक नगरों की यात्रा करते हुए ,पाटलीपुत्र पहुँचे । आहार के लिए जब उन्होंने नगर में प्रवेश किया तो नगर की देवदत्ता नामक वेश्या.जिसके यहाँ कुटिला पण्डित धाय राजा के डर से छिपी हुई थी उसने सुदर्शन को देखते ही देवदत्ता को भड़काते हुए कहा कि –“ यही वह सुदर्शन मुनि है जिसके कारण रानी को आत्महत्या करनी पड़ी ।"
मुनि सुदर्शन का इस अवस्था में भी इतना आकर्षक व्यक्तित्व देखकर देवदत्ता के मन में वासना की अग्नि जल उठी । उसने अपनी वेश्या बुद्धि का प्रयोग करने का निश्चय किया । उसने तुरन्त मुनि के पाड़िगाहन का निश्चय किया । मुनि महाराज को पाड़िगा कर वह आदर सहित अपने भवन में ले आई।
“महाराज आप अभी जवान हैं , सुन्दर हैं , संसार के भोगोग को भोग सकते है । इस योग को छोड़ो और सुख भोगो । " वेश्या ने अपना अभिप्राय व्यक्त किया । - “भगिनी तुम्हें यह शोभा नहीं देता । इस रोग के घर गलित शरीर पर इतना मोह ठीक नहीं । शरीर का सदुपयोग तो तपश्चरण में है । तुम भी इस का उपयोग आत्मकल्याण में करों ।' मुनि सुदर्शन ने उसे समझाने का प्रयत्न किया।
“ मेरे ऊपर तुम्हारे उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता । तुम्हें मेरे
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