Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

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Page 21
________________ *-*-drink परीषह-जयी Xxx xxxxxxx महाराज प्रद्योतन इस जूती को देखकर चकित रह गये । उसके जगमगाते हीरे उनकी आँखों में चकाचौध भरने लगे । वे मन ही मन सोचने लगे कि मेरे राज्य में वह कौन सा धनी सेठ है जिसके यहाँ ऐसी कीमती जूतियाँ पहनी जाती हैं ! राजा ने वह जूती उस वेश्या को ही इनाम स्वरूप देकर विदा किया और अपने मंत्री को बुलाकर खोज करने का आदेश दिया । महाराज के आदेश का पालन किया गया । और मन्त्री ने अपने गुप्तचरों द्वारा यह पता लगाया कि यह जूती नगर सेठ सुकुमाल की पत्नी के पाँव की है । राजा को प्रसन्नता हुई कि उनके राज्य में उनसे भी अधिक धनी सेठ हैं । सुकुमाल से मिलने की उत्कंठा उनके मन में जागी । उन्होंने सुकुमाल जी सेठ के यहाँ यह संदेश भिजवाया कि वे उनसे मिलने आ रहे है । “पधारिये महाराज ।" कहते हुए यशोभद्रा सेठानी ने महाराज का स्वागत किया । दासियों ने महाराज की आरती उतारी,उनके चरण प्रक्षाल किए । महाराज को उच्च आसन पर बैठाया गया । महाराज से पुत्र सुकुमाल का परिचय कराया । महाराज के वात्सल्य भाव से सुकुमाल को अपने पास बैठाया । सेठानी यशोभद्रा ने अपने पुत्र और महाराज की आरती उतारी । सुकुमाल की आँखों से पानी बह निकला । "सेठानीजी ,सुकुमाल की आँखों से पानी क्यों बह निकला । " महाराज ने जिज्ञासा से पूछा । " महाराज ,मेरे बेटे सुकुमाल को रत्नमयी दीपक के प्रकाश में ही देखने की आदत है । उसकी आँखों ने शीतल प्रकाश को ही देखा है । आज इस दीपक की लौ को देखने से उसकी आँखों में पानी आ गया ।" "सेठानी जी,आपके पुत्र चावलों में से दाने बीन कर क्यों खा रहे हैं ।" सुकुमाल को भोजन करते समय एक-एक चावल चुन-चुन के खाते हुए देखकर महाराज ने जिज्ञासा वश सेठानी से पूछा । " महाराज ,मेरे बेटे को खिले हुए कमलों में रखकर सुगन्धित चावल खाने की आदत है । आज वे चावल थोड़े होने से उनमें अन्य चावलों को मिलाकर चावल पकाये गए हैं, अतः सुकुमाल चुन-चुन कर सुगन्धित चावलों को खा रहा है ।" सेठानी के इन उत्तरों से महाराज को सुकुमाल की रूचि, उसकी कोमलता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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