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XXXXXXपरीषह-जयीXXXXXXXX
__ " भाई ये शत्रु की फौज के सिपाही हैं जो क्रूर हत्यारे हैं उन्हें रास्ते में जो मिलता है उसका वध कर देते है ।" निकलंक ने धोबी को मृत्यु का भय बताया। उनके मन में यह बात बिजली की तरह कौंधी थी कि "यदि सैनिक मुझे अकेले को देखेंगे तो मुझे तो मार ही डालेंगे । अकलंक को भी जीवित नहीं छोड़ेंगे । यदि ये धोबी मेरे साथ दौड़ेगा तो सैनिक हम को अकलंक-निकलंक समझ कर मार डालेंगे । और इस तरह अकलंक बच जायेगे । "निकलंक ने इस निर्दोष धोबी से जो असत्य कहा उसका उन्हें दुःख तो हुआ । परन्तु अकलंक को धर्म की रक्षा के लिए बचाने का इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं था । झूठ बोलकर धोबी की मृत्यु का पाप अपने सिर पर ओढ़कर अशुभ कर्मों के बन्ध और परिणामों को भोगने की तैयारी के साथ दौड़ते रहे । धोबी भी जान बचाने के भय से निकलंक के पीछे दौड़ने लगा । अभी वे कुछ ही दूर तक दौड़ पाए थे कि अश्वारोही सैनिकों ने इन दोनों को दबोच लिया । और निर्ममता से उन्हें मौत के घाट उतार दिया । धोबी तो कुछ समझ ही न पाया और जान से हाथ धो बैठा । निकलंक तो जैसे इस परिणाम के लिए तैयार ही थे , सैनिकों के तलवार के प्रहार के समय उनकी आँखों में अद्वितीय चमक थी और स्वर में 'जैनधर्म की जय ' का उद्घोष था वे धर्म के लिए आज हसते हंसते शहीद हो गए ।
रत्न संचयपुर नगर में आज बड़ी धूमधाम थी । महारानी मदन सुन्दरी ने अपनी आस्था के प्रतिरूप जिनमंदिर का निर्माण कराया था । आज जिन पूजा महोत्सव के उपलक्ष में जिनेन्द्र भगवान की यात्रा का दिन था । भक्त समुदाय उमड़ रहा था । सम्पूर्ण नगर ध्वजा पताकाओं से सजाया गया था । मधुर भजनों की संगीत ध्वनि से वातावरण गुंजित था । महारानी चाहती थी कि इस रथ यात्रा में उनके पति महाराज हिमशीतल भी सम्मिलित हों । महाराज स्वयं बौद्ध धर्म के अनुयायी थे । यद्यपि वे महारानी के जिनाराधना के कार्य में रूकावट नहीं करते थे, परन्तु उसमें हिस्सा भी नहीं लेते थे ।
" महाराज आप जैसे भगवान बुद्ध के अनुयायी होते हुए ,आपकी महारानी इतना बड़ा जूलूस निकाल कर बौद्ध धर्म का मजाक ही उड़ा रही है । आपको यह
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