Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ xnxxxxx परीषह-जयी kritik रूचि लेकर खाये । देखते ही देखते कुछ ही देर में वे सभी थालों का भोजन अपने उदर में स्वाहा कर गये । पहलीबार उन्हें तृप्ति-कर भोजन मिला । मीठी डकार लेकर उन्होंने दरवाजे खोले । आश्चर्य चकित होकर महाराज शिवकोटी, पुजारी जी और उपस्थित जनसमूह ने देखा कि सचमुच सभी थाल खाली थे । इस चमत्कार को देख कर महाराज शिवकोटी महन्त जी के चरणों में नतमस्तक हो गए | पुजारी जी तो उनके चरणों में लेट गये । जनता महन्त जी का जयजयकार करते हुए उनके चरणों का स्पर्श करने लगी । महाराज ने उसी समय नये महन्त जी को शिवमंदिर का प्रधान महन्त और पुजारी घोषित कर दिया । महन्त समन्तभद्र यही तो चाहते थे । वे मंदिर के प्रधान पुजारी बनकर प्रतिदिन आये हुए भोजन को पेट भरकर खाते और अपने भस्मक रोग को संतुष्ट करते । देखते देखते छह महीने गुजर गए । इन छह महीनों में प्रतिदिन पर्याप्त भोजन प्राप्त होने से समन्तभद्र का रोग धीरे धीरे शान्त होने लगा । शरीर की स्थिति यथावत बनने लगी । समन्तभद्र रोग-मुक्त हो गए । परन्तु एक समस्या खड़ी हुई कि अब पूरा भोजन करना असम्भव हो गया । इससे भोजन बचने लगा। “महन्तजी क्या बात है अब भगवान बहुत कम भोजन करने लगे हैं ? बचे हुए अन्न को देखकर पुजारी ने पूछा । “पूजारीजी यह भगवान शिव की माया है । कल शंभू ने मुझसे कहा कि वे महाराज शिवकोटी की सेवा से अतिप्रसन्न हैं । अब वे पूर्ण तृप्त है अतः अब प्रसाद भक्तों में बांट देने को कहा है । " बात बनाते हुए महन्त समन्तभद्र ने पुजारी को समझाया । पुजारी की समझ में कुछ नहीं आया । उसने यह हाल जानकर महाराज शिवकोटी को सुनाया । महाराज शिवकोटी ने अपने मंत्रीप्रवर से सलाह ली । पश्चात तय किया कि- “जब तक हम तथ्य और सत्य का पता न लगा लें , तब तक महन्तजी से कुछ न कहे । न ही ऐसा आभास होने दें कि हम उनकी जासूसी कर रहे हैं । पर अब पता लगाना जरूरी है कि ये महन्त जी प्रसाद के थाल गर्भगृह में रखवा कर ,पट बंद करके अंदर क्या करते हैं । कैसे शिवजी को भोग लगाते हैं ?'' ___ एक दिन युक्ति प्रयुक्ति से जब महन्त समन्तभद्र कहीं बाहर गये हुए थे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162