Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

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Page 128
________________ rrrr परीषह-जयीrrrrrr परिचय दिया । जंबूकुमार ने नम्रता से उन्हें प्रणाम किया ,स्नेहवश आलिंगन किया और कुशल क्षेम पूछकर उचित आसन पर बैठाया । चर्चा के दौरान उसने और जिनमती ने पुनः जंबूकुमार को समझाने का प्रयत्न किया । विद्युतच्चर ने जंबूकुमार को भौतिक सुखों की ओर प्रेरित करने के लिए अनेक उदाहरण देकर तर्क प्रस्तुत किए। लेकिन जंबूकुमार ने उनके प्रत्येक तर्क और कामदर्शन को अपने तर्कों से निरुत्तर कर दिया । और, यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्य संसार के भोग-विलासों में फंसकर कर्म के बन्धनों को बाँधता हैं । जब इन कर्मों की तप द्वार निर्जरा करता है तभी अपने शुद्ध स्वरूप को पाकर मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त कर पाता है। इस के उपरान्त जंबूकुमार ने अपने पूर्वभव के वृत्तान्तों को सुनाकर अपने दृढ़ निश्चय को व्यक्त किया । “जंबूकुमार यह सत्य है कि तुम्हें धर्म की श्रद्धा और तप के प्रभाव से पूर्व जन्मों में सुख प्राप्त हुए । लेकिन बार-बार ऐसा सुख मिल ही जायेगा ,ऐसा क्यों मानते हो ? " पुनः कुछ कथानकों के माध्यम से उदाहरण देकर अपनी बात को पुष्ट करने का प्रयत्न किया । ___ जंबूकुमार ने अपने मामा के कथानक में दिए भोगों के उदाहरणों को कथानकों के उदाहरण द्वारा ही परास्त करते हुए वैराग्य की महत्ता को स्थापित किया । जंबूकुमार के अकाटय तर्कों को सुनकर विद्युतच्चर उनके प्रति इतना प्रभावित हुआ कि उसने भक्ति पूर्वक जंबूकुमार की स्तुति की और उनके ही साथ-दीक्षा लेने का संकल्प व्यक्त किया । प्रातःकाल की किरण जग को आलोकित कर रही थी । सुनहरा थाल लिए उषा प्राची में सूर्य को तिलक लगा रही थी । पक्षियों के गान मानों सब को जगा रहा था । विहग -राग के मन्द स्वर गूंज उठे थे । मलयानिल कलियों से अठखेलियां कर रहा था । पुष्पों की सुगन्ध वातावरण को सुगन्धित कर रही थी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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