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Xxxxxपरीषह-जयीxxxxxxxx
" मित्र सुदर्शन आज तुम उदास क्यों हो ? तुम चेहरे पर व्याग्रता क्यों है ?' सुदर्शन को उदास देखकर उनके सखा ,पुरोहित पुत्र कपिल भट्ट ने पूछा।
“मित्र क्या बताऊँ । मेरे मन में ना जाने कैसी मीठी-पीड़ा हो रही है । तुम्हें पता है कि जब हम लोग कल राजमार्ग से घर लौट रहे थे, तब एक सुकन्या जो वस्त्राभूषणों से अलंकरित थी, जो अपनी सखियों के साथ मंदिर से पूजा अर्चना करके लौट रही थी ,उसके सौन्दर्य ने मुझे उसकी ओर आकर्षित कर लिया । मेरा मन अनायास उसकी ओर खिंच गया । मुझे अनुभव हो रहा है कि हमारा जन्म-जन्मान्तर का रिस्ता है । उसे पाने की तीव्र भावना के कारण मेरा चित्त उदास है । "सुदर्शन ने अपने अंतरंग मित्र को अपने मन की भावना का बयान किया ।
कपिल ,सुदर्शन जैसे चरित्र निष्ट ,सरल,हँसमुख मित्र के मुख से यह सुनकर चकित तो हुआ ,परन्तु इसे यौवन की आवश्यकता मानकर एवं पूर्वजन्म के संस्कारों को मानकर उसने अपने मित्र को आश्वासन दिया कि वह पूरा पता लगाकर उसे बतायेगा कि वह कन्या कौन थी ,और क्या उनका विवाह संभव
सुदर्शन को बेचैन देखकर सेठ वृषभदास भी बेचैन हो उठे । वे सोचते बेटे को ऐसा कौनसा दर्द है ? क्या किसीने कुछ कहा ? क्या कोई शारीरिक व्याधि है ? ऐसे अनेक प्रश्न उन्हें सताने लगे । उन्होंने पत्नी से भी चर्चा की । पुत्रकी उदासी से सेठानी का तो मन ही उचट गया । वे दोनों रातभर इसी पर अनेक तर्क-वितर्क करते रहे ।
"क्यों न उसके मित्र कपिल से ज्ञातकरें ?" सेठानी ने सुझाया । “यही ठीक रहेगा । " सेठ ने भी समर्थन किया ।
प्रातः सेठ वृषभदास राजपुरोहित के घर पहुँचे और कपिल से पुत्र सुदर्शन की उदासी का कारण पूछा ।
“पूज्य काकाजी मेरा प्रिय मित्र सुदर्शन अब युवा हो गया है । उसे अब विवाह के बंधन में बाँधना चाहिए । चाचाजी कल ही मैंने प्रिय मित्र से उसकी उदासी का कारण पूछा था । बड़े संकोच के साथ उसने किसी लड़की के प्रति अपने आकर्षण की चर्चा की थी।"
"कौन है वह लड़की ?" जिज्ञासा से सेठजी ने पूछा ।
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