Book Title: Parishah Jayi
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Kunthusagar Graphics Centre

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Page 146
________________ ***xxxxx परीषह-जयीxxxxxxx प्रहार करती त्यों-त्यों सुदर्शन अपने चरित्र में और भी दृढ़ हो जाते वे निरन्तर पंचपरमेष्टी का स्मरण करते रहे । रात बीतने को थी । भोर के स्वर फूटने के थे । रानी आखिर अपनी कुचेष्टाओं में सफल न हो सकी। उसे भय लगा कि कहीं वह बदनाम न हो जाए ,अतः दुराचारणी और कुलटा नारी के अनुरूप नाटक करते हुए उसने स्वयं अपने वस्त्र फाड़ डाले । नाखूनों से अपना शरीर क्षत कर डाला । और बचाओ-बचाओ चिल्लाकर रोने लगी । रानी की चिल्लाने की आवाज सुनकर द्वारपाल दौड़े आए । उन्होंने तुरन्त राजा को सूचित किया । राजा रानी के शयनकक्ष में आये । राजा को आता देखकर अभयमती और जोर से रोने लगी । रो-रो कर बोली – “इस नगर सेठ ने मेरे कक्ष में आकर मुझ पर बलात्कार करने की कोशिश की है ।"और अपने विक्षत खरोंच वाले अंगों को दिखाने लगी । सुदर्शन तो इस घटना को उपसर्ग जानकर समाधि लीन हो गए । राजा रानी के रूदन फटे हुए वस्त्र और शरीर की खरोंच को देखकर आपे से बाहर हो गए । उनका विवेक ही जैसे नष्ट हो गया । उन्होंने एकाएक सैनिकों को आदेश दिया कि – “सेवको इस अधम पापी को स्मशान में ले जाकर इसका वध कर दो । "रानी को छाती से लगाकर उसे सांत्वना देने लगे । रानी भी अपने बनावटी आसुओं और अपनी अदाओं से अपना शीलवती होने का अभिनय करने लगी। सैनिक ,सुदर्शन को घसीटते हुए स्मशान में ले गए और उनका सिरच्छेद करने के लिए तलवार का बार किया । लेकिन ,उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा , जब तलवार का बार गले का पुष्पहार बन गया । जितनी बार भी वे आघात करते उतने ही पुष्पहार सुदर्शन के गले में बढ़ते जाते । सैनिकों ने यह समाचार महाराज को दिया | महाराज को आश्चर्य हुआ । उन्होंने अन्य सैनिकों को भेजा लेकिन वही पुनरावर्तन। आखिर राजा स्वयं अपनी सेना को लेकर स्मशान भूमि में सुदर्शन का वध करने पहुँचे । “महाराज यहाँ स्मशान में यह कौन सी सेना खड़ी है ? अभी तो यहाँ कोई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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