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Xxxxxxxx परीषह-जयीxxxrxxxrdx अलावा किसी को नमस्कार नहीं कर सकता । उसी दृढ़ता से समन्तभद्राचार्य ने प्रत्युत्तर दिया ।
__ " अभी भी सोच ले दुष्ट ढोंगी ! यदि तू शिवलिंग को नमस्कार नहीं करेगा तो तेरी मृत्यु निश्चित है ।"
“महाराज आप उत्तेजित न हों मेरा नमस्कार यह शिवलिंग नहीं सह पायेगा । यदि मैंने नमस्कार किया तो आपका ही अनिष्ट होगा ।" _ "क्या होगा । धूर्तता की बातें मत कर । "
“महाराज मेर नमस्कार करते ही यह शिवलिंग खंडित हो जायेगा।" समन्तभद्र ने स्पष्टता की ।
“मुझे बेवकूफ बनाता है । ऐसे ही भगवान प्रसाद खाते हैं । कहकर तूने आँखों में धूल झोंकी थी । पर अब मैं तेरे वाकजाल और माया में फँसने वाला नहीं हूँ । तू नमस्कार कर ,जो होना होगा हम देख लेंगे ।' महाराज अपनी आज्ञा पर अटल रहकर बोले ।
. “ठीक है महाराज यदि आप चमत्कार देखना चाहते हैं तो मैं प्रस्तूत हूँ । कल प्रातःकाल आपको यह चमत्कार भी देखने को मिल जायेगा । " समन्तभद्र ने उसी आत्मविश्वास से उत्तर दिया ।
महाराज ने सुबह तक की मोहलत देकर मंदिर के चारों ओर नंगीतलवार लिये चुनंदा सैनिकों को लगाते हुए आदेश दिया – “सैनिकों मंदिर के पट बंद कर दो । इस महन्त को यहीं नजर कैद कर दो । ध्यान रहे यह रात्रि को कहीं भागने न पाये । यदि भागने कि कोशिश करे तो इसका शिरच्छेद कर देना ।" सैनिको को आदेश देकर वे राजभवन लौट गये ।
शिवमंदिर में अकेले एकान्त में समन्तभद्राचार्य अनेक तर्क वितर्को में उलझ गये । वे सोचने लगे – “मैंने महाराज से कह तो दिया पर अब क्या होगा।" वे उसी समय पंचपरमेष्ठी के ध्यान में आरूढ़ हो गये । उनका चित्त एक मात्र भगवान के ध्यान में सिमट गया । कभी-कभी यह शंका की लहर भी उठती “यदि मेरे नमस्कार करने पर चमत्कार न हुआ तो मुझे अपनी मृत्यु का भय नही पर मेरे महान जिनधर्म की हँसी होगी । " यह कल्पना उन्हें पीड़ा देने लगी । फिर सोचने लगे - “मेरा क्या ? भगवान मैंने तो तेरे ही आधार पर अपनी बात कही है । अब आप अपना विरुद विचार कर स्वयं ही मेरा मार्ग
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