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Arrar परीपह-जयी
वारिषेण मुनि
"महाराज की जय हो । " कहते हुए सिपाहियों के सरदार ने महाराज श्रेणिक के सामने सिर झुका दिया ।
“क्या बात है ,नायक ? घबड़ाये हुए क्यों लग रहे हो ? " श्रेणिक महाराज ने पूछा।
"महाराज हमें बड़े दुख के साथ आपके समक्ष .......। " “हाँ-हाँ कहो, क्यों रूक गये । "
“महाराज श्री कीर्ति सेठ का बहुमूल्य रत्नों का हार कुमार वारिषेण से प्राप्त हुआ है । इसलिए हम राज्य के कानून के मुताबिक उन्हें बन्दी बनाकर आपके पास ले आये हैं । " कहते-कहते रक्षक दल के नायक ने बन्दी बनाये गए वारिषेण कुमार को महाराज के सामने प्रस्तुत किया ।
___ अपने प्रिय पुत्र वारिषेण को इस प्रकार बन्दी अवस्था में देख कर महाराज श्रेणिक और महारानी चेलनी स्तब्ध रह गई । उन्हें आश्चर्य हुआ कि “मगध का राजकुमार होने वाला शासक इतना नीच कार्य भी कर सकता है । जिस पुत्र को हमने अपनी आँखों का तारा समझा था ,जो हमारे हृदय का दुलारा था, वह इतनी गिरी हुई हरकत कर सकता है । " इस कल्पना मात्र से महाराज का क्रोध बढ़ता जा रहा था । ___“बेटा तुमने ऐसा क्यों किया ? तुम्हें धन की क्या कमी है ? " महारानी चेलनी ने वात्सल्य से वारिषेण से पूछा ।
“बोलो तुम्हारी क्या मजबूरी थी, जो तुम्हें चोरी करनी पड़ी ? ' महाराज श्रेणिक ने क्रोध को दबाते हुए वारिषेण से पूछा ।।
वारिषेण नतमस्तक मौन खड़े थे । वे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहे थे । उन्हें खुद आश्चर्य था कि यह क्या हो रहा है । वे इसे अपने अशुभ कर्म का उदय मान कर मौन थे । उनका मौन महाराज के शक को निश्चय में बदल रहा था | उनका क्रोध और भी बढ़ रहा था । उन्होंने क्रोध-व्यंग से कहा -
“क्यों बोलते नहीं हो ? तुम्हारा यह मौन तुम्हें चोर ठहरा रहा है । बड़े
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