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Xxxxxx परीपह-जयीxxxxxxxxxx
" ये सब ढोंग है । तप की आड़ में यह चौर्यकार्य करने का नया तरीका है ।" एक नागरिक ने व्यंग से कहा । .
“भाई राजकुमार हैं । उन्होंने सोचा होगा कि वे राजा के पुत्र हैं ,उन्हें कौन सजा दे सकता है , इसलिए ऐसी मनमानी व्यक्त करने लगे थे । " उपस्थित एक व्यक्ति ने विचार व्यक्त किये ।
“अब सोचते हैं कि महाराज क्या न्याय करते हैं । पुत्र प्रेम कहीं न्याय पर हावी न हो जाये | "
" भाई क्या समय आ गया है । रक्षक ही भक्षक बन गया है । कल जिसे राजा बनना है ,वह यदि चोर होगा तो प्रजा का क्या कल्याण करेगा , और क्या रक्षा करेगा ? "एक अनुभवी नागरिक ने चिन्ता व्यक्त की।
पूरे नगर के हर चौक ,हर गली में यही चर्चा छायी हुई थी।
महाराज श्रेणिक ने देखा कि वारिषेण कुमार कुछ उत्तर नहीं दे रहे हैं । तो उन्होंने गरजते हुए आदेश दिया = "सैनिकों इस दुष्ट ,धोखेबाज चोर ,कुलकलंकी को वही सजा दो ,जो जिसके लिए उचित है । लोगो को भी यह उदाहरण मिले कि इस राज्य में चोरी की क्या सजा हो सकती है । इसे मैं प्राणदण्ड की सजा देता हूँ । ले जाओ और इसका सिरच्छेद कर दो ।" __महाराज के इस कठोर दण्ड को सुनकर महारानी चेलनी मूर्छित होकर गिर पड़ी । उपस्थित सैनिकों के दिल भी कांप उठे । लेकिन वारिषेण कुमार के चेहरे पर भय का नामोनिशान तक नहीं था । सैनिकों को आज्ञा पालन के अलावा कोई चारा भी नहीं था । वे बन्दी राजकुमार को कक्ष से बाहर वधस्तम्भ की ओर ले चले । महाराज श्रेणिक अभी भी क्रोध और क्षोभ से बड़बड़ा रहे थे -“कैसा कुल कलंकी बेटा पैदा हुआ । धर्मात्मा का ढ़ोग करता रहा । जिसे मैं सिंहासन पर बैठा कर राज्य की बागडोर सौंपना चाहता था । वह ऐसा दुराचारी होगा। इसकी कल्पना भी नहीं थी। "
महाराज का क्रोध धीरे-धीरे आत्म ग्लानि में परिवर्तित हो रहा था । वे सोचते - “महारे लालन-पालन में ऐसी क्या कमी रह गई जो हमारे बेटे को चोरी करनी पड़ी । महारानी चेलनी के संस्कार,जैनधर्म के प्रति उसकी श्रद्धा यह सब कुछ क्या निरर्थक हुए । यह हमारे किन पाप कर्मों का उदय है कि हमारा राजकुमार ऐसा कृत्य करने लगा | क्या वह किसी कुसंगति में पड़ गया ? "
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