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--*---*-- परीषह-जयी*kritik युवकों से तुम्हारा विवाह करा देंगे।" पुत्रियों का समझाने का श्रेष्टियों ने पूरा प्रयत्न किया । “नहीं पिताजी अब यह संभव नहीं है । हमने सच्चे मन से जंबूकुमार को अपना स्वामी माना है । यदि हम अपने प्रयत्न में सफल न हो सके तो हम भी जिनेश्वरी दीक्षा धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर उनकी सहयात्रिणी बनेगे । लेकिन अन्य किसी अन्य पुरूष के साथ विवाह संभव नहीं।" चारों कन्याओं ने दृढ़ता से कहा ।
चारों पुत्रियों के पिता बड़े दुखी थे । पर पुत्रियों के दृढनिश्चय के सामने उन्हें झुकना पड़ा । अन्ततोगत्वा चारों कन्याओं की ओर से एक दूत श्रेष्टि अरहदास के यहाँ पहुँचा ।
“श्रेष्टिवर मैं आपके चारों मित्रों की ओर से उनकी पुत्रियों का संदेश लेकर आया हूँ ।' आगतदूत ने अपना परिचय देते हुए अपने उद्देश्य को विनयपूर्वक प्रस्तुत किया ।
“कहो दूत क्या संदेश है ? " सेठजीने अति उदास स्वर में पूछा ।
“सेठजी आपकी होनेवाली पुत्रवधुओं का यह दृढ़ निश्चय है कि वे विवाह करेंगी तो जंबूकुमार से अन्यथा क्वारी रहेंगी। "
"लेकिन मेरा पुत्र तो विवाह न करने का निश्चय कर चुका है। "
“श्रेष्टिवर उन कन्याओं ने पूर्ण विश्वास से यह संदेश भेजा है कि जंबूकुमार विवाह करके चाहे तो एक दिन ही घर में रहे । यदि इस एक दिन के पश्चात भी उन्हें दीक्षा लेना ही रुचे तो अवश्य ले लें ।' ___“मैं इस बात को समझा नहीं दूतवर । " अरहदास ने जिज्ञासा से पूछा
“इसका रहस्य तो मैं भी निश्चित रूप से नहीं जानता । पर मेरा अनुमान है कि उन चारों रूप और गुण में श्रेष्ट कन्याओं को यह विश्वास है कि वे अपने सौन्दर्य और गुणों से अवश्य जंबूकुमार को रिझाकर ,उनके मन को परिवर्तित कर सकेंगी ।"
"ठीक है मैं पुत्र को समझाकर तुम्हें सूचना देता हूँ । '
दूत की योग्य व्यवस्था कर सेठ अरहदास अन्तःपुर में गये । पत्नी जिनमती को बुलाया । दोनों जंबूकुमार के कक्ष में आये । माता-पिता को कक्ष में आया जान जाम्बूकुमार पलंग से खड़े हो गये । उनके चरण स्पर्श किए एवं विवेकपूर्वक करबद्ध खड़े होकर बोले – 'हे पिताजी ! हे माताजी ! आपने आने
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