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चिलात पुत्र मुनि की कथा
" महाराज यदि आपको मेरी कन्या से पाणिग्रहण करना है तो आपको मेरी एक शर्त माननी होगी । यमदंड भील ने महाराज उपश्रेणिक के समक्ष पुत्री के पाणिग्रहण के लिए शर्त रखते हुए कहा ।
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कौन सी शर्त भीलराज ? " मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है । मुझे तुम्हारी कन्या बेहद पसन्द है । कहते हुए राजा उपश्रेणिक ने भीलराज ने यमदंड से पूछा ।
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परीषह - जयी
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राजन आप राजगृह के महाराज है । मैं इस जंगल का भीलराजा आपके निवास में अन्य रानियाँ होंगी । उनकी संताने भी होगी । " हाँ हैं....." महाराज ने हामी भरी ।
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“महाराज मेरी पुत्री भील पुत्री है । स्वाभाविक है कि आपके यहाँ उसका अन्य रानियाँ अपमान भी करें । आपके सामने वे ऐसा न भी करें पर परोक्ष रूप से वे मेरी पुत्री से मन ही मन घृणा करेंगी । दूसरे, मेरी पुत्री से उत्पन्न आपकी संतान भी अन्य राजकुमारों द्वारा तिरस्कृत ही रहेगी । अतः मैं नहीं चाहता कि मेरी पुत्री और उसकी संतान जीवन भर अपमान का घूंट पियें । उसे जिन्दगी भर गुलामी का जीवन व्यतीत करना पड़े ।
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"ऐसा नहीं होगा भीलराज यमदंड । मुझ पर विश्वास करो। तुम्हारी पुत्री को वही सन्मान मिलेगा जो अन्य रानियों को प्राप्त है । अरे उससे भी अधिक सन्मान दूँगा । हाँ, आप अपनी शर्त तो कहें । महाराज ने आश्वासन देते हुए पूछा ।
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महाराज यदि आप मेरी कन्या का पाणिग्रहण करना चाहते हैं तो आपको मेरी पुत्री तिलकवती को पटरानी का पद देना होगा । उससे उत्पन्न संतान को ही युवराज पद पर आसीन कर उसे ही राज्यगद्दी पर बैठाना होगा ।"
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महाराज क्षणभर को सोचते रहे । पर ज्यों ही उनकी आँखें तिलकवती की आँखों से चार हुई वे जैसे सब कुछ भूल गये । और प्रेम के आवेश में
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