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परीषह - जयी
जन्म का बैर ले रहे हैं । क्यों मुझ निर्दोष को मृत्युदण्ड दिलाने पर तुले हैं ? मुझ जैसा अपाहिज क्या आप जैसे कोतवाल की कड़ी सुरक्षा तोड़कर चोरी कर सकता है ? कोढ़ी ने यमदण्ड के समक्ष हाथ जोड़कर सफाई पेश की ।
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महाराज को भी आश्चर्य हो रहा था कि कोतवाल इस कोढ़ी को किस आधार पर पकड़ लाये । उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह कमजोर सा रोगी इतनी कड़ी सुरक्षा को चीर कर मेरा हार भी चुरा सकता है । इसलिए वे कौतुक से कभी कोढ़ी को और कभी यमदण्ड कोतवाल को देखते । महाराज समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या निर्णय दें । उन्हें यह सन्देह भी हुआ कि कोतवाल अपनी निष्फलता को छिपाने के लिए इस रोगी को फँसा रहे है । "कोतवाल जी मुझे तो नहीं लगता कि यह कोढ़ी इतनी बड़ी चोरी भी कर सकता है । क्यों इसे जबरन बिना किसी सबूत के पकड़ लाए हो ।” महाराज ने अपनी शंका व्यक्त करते हुए कहा ।
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“महाराज हमें भी ऐसा ही लग रहा है कि कोतवाल जी का अनुमान सही नहीं है । कहीं ऐसा न हो कि गरीब भिखारी निर्दोष मारा जाये । प्रधान मन्त्री ने भी अपनी राय दी । प्रधान मन्त्री की हाँ में हाँ उपस्थित अन्य कर्मचारियों ने भी मिलाई ।
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"महाराज मेरा सन्देह गलत नहीं हो सकता । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यही चोर है । आप मुझे एक दिन की मोहलत और दें । दृढ़ता से कहते हुए प्रार्थना की ।
कोतवाल ने
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महाराज ने कोतवाल को एक दिन का समय दिया । कोतवाल कोढ़ी चोर को कारागार में ले गया और उसे पूरी तरह से मारा पीटा और अनेक यातनाएँ दी । लेकिन कोढ़ी का इन यातनाओं के भोगने के बाद भी उत्तर यही था - मैं चोर नहीं हूँ । आखिर कोतवाल भी हर प्रकार की यातनाएँ दे कर थक गया । वह सोचने लगा - " मैंने भयानक से भयानक गुनहगारों से गुनाह कबूल करवाये हैं । मेरी सजा और यातनाओं के सामने मजबूत से मजबूत चोर भी टूट गए हैं । परन्तु न जाने यह चोर किस माटी का बना है । इतनी मार खाकर तो शायद ही कोई बचता है । पर इस पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ रहा है । मेरी बुद्धिही काम नहीं कर रही है । यदि मैं इससे कबूलात नहीं करवा पाया तो मुझे सजा भुगतनी पड़ेगी । और इसे मारने की, सताने की बदनामी भी भुगतनी
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