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*** परीषह-जयी Arrrrrrr*
विधुच्चर मुनि
"कोतवाल यमदण्ड तुम्हारे जैसा होशियार कोतवाल होते हुए भी राजमहल में चोरी हो गई । यह बड़े आश्चर्य की बात है । तुम चोर को जैसे भी हो हाजिर करो, अन्यथा तुम्हें इससकी सजा भुगतनी पड़ेगी।" मिथिलापुर के राजा वामरथ ने अपने कोतवाल को डाँटते हुए कहा ।
__ “महाराज आश्चर्य तो मुझे भी है । मैं इसके लिए लज्जित भी हूँ । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं सात दिन में आपके समक्ष चोर को हाजिर करूँगा । अन्यथा आप जो भी सजा देगे वह मुझे मन्जूर होगी । " कहते हुए यमदण्ड ने महाराज से निवेदन किया |
यमदण्ड को आश्चर्य हो रहा था कि उसके इतने कड़े इन्तजाम के बावजूद यह कैसे हो गया ? और फिर चोरी भी हुआ तो महाराज का वह हार जो सबसे मूल्यवान था । लगता है अवश्य कोई रक्षक या तो चोर से मिला है या फिर कोई बहुत ही माहिर चोर का यह कार्य है । इस प्रकार यमदण्ड की चिन्ता बढ़ती गई। न उसे रात को नींद आती , न दिन को चैन मिलता । वह दिन भर इसी उधेड़बुन में रहता कि कैसे चोर को पकड़ सके । उसे यह भय भी सताता कि यदि सात दिन में चोर को गिरफ्तार न कर सका तो मेरे ही प्राणों का अन्त हो जाएगा । यमदण्ड ने अपने गुप्तचरों को शहर की गली-गली ,घरघर, सब कुछ छान डालने को कहा । सारा गुप्तचर विभाग छान बीन करके थक गया परन्तु कहीं पर भी चोर का कोई सुराख नहीं मिला । छह दिन बीत जाने पर भी जब कोई सुराख न मिल सका तब यमदण्ड की चिन्ता और भी बढ़ गई । आज सातवाँ और अन्तिम दिन था । यदि आज भी चोर का पता न चला तो, अवश्य उसे सजा भुगतनी पड़ेगी । आखिर आज अन्तिम दिन यमदण्ड ने स्वयं चोर को ढूँढ़ने का संकल्प किया । वह अनेक जगहों का निरीक्षण करते समय रास्ते से गुजर रहा था तो उसने एक सुनसान पुराना जीर्ण शीर्ण मंदिर देखा । यमदण्ड उस मंदिर के अन्दर घुसा तो उसने वहाँ देखा कि एक कोढ़ी वहा पड़ा हुआ है। यमदण्ड ने कोढ़ी से जानकारी हेतु कुछ प्रश्न किये । लेकिन उनका
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