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Xxnxxxnxx परीषह-जयीxxxxxxxx कोई सन्तोषजनक उत्तर उन्हें नहीं मिला । इस कारण उन्हें यह विश्वास हो गया कि वह सचमुच का कोढ़ी नहीं है, अवश्य वेशपरिवर्तन करके यह कोई ठग ही लगता है । यमदण्ड ने अन्धेरे में एक तीर चलाया आखिर मरता क्या न करता।
“सच-सच बताओ कि तुम कौन हो ? तुमने यह स्वांग क्यों रचाया । " यमदण्ड ने अपनी शंका के आधार पर कोढ़ी से पूछा ।
___"मैं ढोग नहीं कर रहा हूँ । मैं सचमुच कोढ़ के भयानक रोग से पीडित हूँ । देखते नहीं मैं इस छूत के भयानक रोग के कारण अपने घर परिवार से दूर यहाँ एकान्त में जंगल में पड़ा हूँ ।" कोढ़ी ने सफाई देते हुए कहा ।
“तुम्हारा नाम क्या है ? कहाँ के रहने वाले हो ? इस राज्य में इस शहर में तुम्हें कभी देखा नहीं है , और तुम खाते-पीते क्या हो ? यहाँ पर भोजन बनाने का कोई साधन भी नहीं दिख रहा । है । तुम्हें भोजन कौन पहुँचाता है ? तुम्हारी सेवा कौन करता है ? " यमदण्ड ने कोढ़ी पर प्रश्नों की बौछार कर दी।
कोढ़ी कोतवाल के इन प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर न दे सका । जो भी उत्तर दिया वे व्यवस्थित न होने से यमदण्ड की शंकाको ही दृढ़ करते गए । इससे यमदण्ड का शक और भी मजबूत होता गया । यमदण्ड ने आखिर शंका के आधार पर कोढ़ी को बन्दी बना कर महाराज के समक्ष उपस्थित करते हुए निवेदन किया -"महाराज यह रहा आपका चोर । इसी ने आपके हार को चुराया है । "
“क्यों रे कोढ़ी ,तू ने मेरा हार चुराया है । अरे! इस भयानक रोग से पीड़ित होकर तू अपने पूर्वजन्म के पाप कर्मका फल तो भोगही रहा है और अब यह चोरी का पाप करके क्यों नरकगति में जाने का कार्य कर रहा है । " राजा वामरथ ने कोढ़ी को समझाते हुए पूछा ।
“महाराज मैं चोर नहीं हूँ । मैं तो वैसे ही कर्मों को भोग रहा हूँ । मैं आपाहिज हूँ । चोरी कैसे कर सकता हूँ ? यह तो मेरे पापकर्म का ही उदय है कि ऐसी दुःखी अवस्था में मुझ पर यह आरोप लगाया जा रहा है । गिड़गिड़ाते हुए कोढ़ी ने अपनी सफाई पेश की ।
_ “यह झूठ बोलता है, महाराज इसका यह गिड़गिड़ाना भी ढोंग है । मुझे पूरा विश्वास है कि यही हार का चोर है ।'' कोतवाल ने अपना मत दोहराया | ___ “कोतवाल जी मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ? आप मुझ गरीब से किस
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