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rrrrr परीषह-जयी
** में हो रहा था । पर उसमें लक्षण जंगली लोगों के जैसे ही उभर रहे थे। पढ़ने लिखने में उसका मन न लगता था । हिंसक प्रवृत्तियाँ ,शिकार खेलना हंसी टट्टे करना , आवारागर्दी में उसे विशेष रुचि हो रही थी । राजा एवं सभी मंत्रीगण चिन्तातुर थे।
“ मंत्री जी मैं चाहता हूँ कि चिलातपुत्र को युवराज घोषित करके उसे राजकाज में लगाऊँ ताकि उसकी रुचि इस ओर मुड़े ।" महाराज ने मंत्रीजी से अपने मन का संकल्प व्यक्त किया ।
"महाराज वह कैसे होगा ? आपके अन्य ज्योष्ट और बुद्धिमान पुत्र मौजूद हैं । वे युवराजपद के अधिकारी है । " मंत्री ने सलाह दी ।
“मंत्रीजी मैं महारानी तिलकवती के पिताश्री यमदंडको विवाह से पूर्व वचन दे चुका था कि महारानी के गर्भ से अवतरित बालक ही युवराज पद पर आसीन किया जायेगा । मैं वचनबद्ध हूँ । मैं जानता हूँ कि प्रेमवश भावुकता मैं वह वचन दिया था । पर क्षत्रिय का वचन तो वचन होता है । मैं यह भी जानता हूँ कि ज्योष्ट पुत्रों का अधिकार है । वे ज्ञान शास्त्र में निपुण भी हैं । मैं यह भी देख रहा हूँ कि चिलातपुत्र में राजघराने के संस्कारों के स्थान पर भील संस्कार उभर रहे हैं । पर मैं प्रतिज्ञाबद्ध हूँ । " कहते हुए महाराज ने अपनी वेदना व परिस्थिति से अवगत कराया ।
मंत्री विचार में पड़ा गये । वे जानते थे कि महाराज के पुत्र श्रेणिक सर्वगुण सम्पन्न हैं । वे ही सच्चे उत्तराधिकारी हैं । यह चिलातपुत्र संस्कारहीन है। राज्य की इसके कारण अवगति ही होगी । पर वे क्या कर सकते थे । राजा की वचनवद्धता को कैसे नकार सकते थे ? आखिर उन्होंने सलाह दी -- “महाराज क्यों न हम राज ज्योतिषी जी से भी सलाह ले लें ।"
"ठीक है । राज ज्यात्तिषी बुलवाये । "
दूसरे दिन राजज्योतिषी के आने पर महाराजने पूछा – “ज्योतिषी जी कृपया बतायें कि इस राज्य के युवराजपद पर कौन सा कुमार योग्य सिद्ध होगा? किसके द्वारा राज्य का हित होगा ? "
ज्योतिषीजी ने ज्योतिष के ज्ञान की दृष्टि से ग्रह नक्षत्र आदि के आधारपर कहा -- “महाराज मेरा ज्ञान कहता है कि आप दो प्रयोग करें इनमें जो राजकुमार सफलता प्राप्त करे उसे ही युवराज पद प्रदान करें। "
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