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परीषह - जयी
दिए । सेना से यह जीत असंभव बताई । इससे वह और भी चिन्तित हो गया । इधर कुमार श्रेणिक का साथ और नेतृत्व पाकर प्रजा चिलातपुत्र को राज्यगद्दी से हटाने के लिए तत्पवर हो उठी । आखिर प्रजा का लोक ज्वाल देख कर भयभीत होकर प्राणों की रक्षा करने के लिए चिलातपुत्र जंगल में भाग
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गया।
राजगृही में रक्तविहीन क्रान्ति के कारण दुष्ट शासक से प्रजा को मुक्ति मिली । कुमारश्रेणिक राजगृही के राज्य सिंहासन पर बैठे । वे अब सम्राट श्रेणिक थे । प्रजा को जैसे पुनः जीवन मिल गया । राज्य में पुनः सुख शांति धर्म की जय गूंजने लगी ।
प्रजा के अक्रोष का सामना न कर सकने वाला चिलातपुत्र राजगृही से भाग कर वन में भाग गया । पर उसकी दुष्ट वृत्ति और शासन करने की वासना अभी शांत नहीं हुई थी । जंगल में उसने अपने साथियों की मदद से एक छोटा सा किला बना लिया । और उन जंगल के निवासियों को उशका धमका कर उनका जागीरदार शासक बन बैठा । चिलातपुत्र ने स्वयं को उस प्रदेश का शासक घोषित कर दिया । वह व उसके चापलूस साथी आजू-बाजू के गांव व जंगल के कबीलों पर अपनी धाक जमाने लगा । उनसे जबरदस्ती कर वसूल करने लगा । अपनी मनमानी यहाँ भी करने लगा । शराब - सुन्दरी और शिकार उनका मानो पेशा ही बन गया । स्वतन्त्रता से जीने वाले आदिवासियों में भय व्याप्त होने लगा । पर चिलातपुत्र ऐशोआराम से अपने किले में रहने लगा ।
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“मामाजी आपकी कन्या सुभद्रा अब सयानी हो गई है । मैं चाहता हूँ कि आप इसका विवाह मेरे मित्र चिलाचपुत्र से कर दे। " चिलातपुत्र के मित्र एवं रूद्रदत्त के भानजे भातृमित्र ने अपने मामा रूद्रदत्त को समझाते हुए कहा । "पर चिलातपुत्र तो अब निर्वासित भगोड़ा है। उसे कन्या कैसे दे दूँ । "नहीं मामा ऐसी बात नहीं है । चिलातपुत्र बहादुर है । उसने जंगल में भी अपना साम्राज्य बना लिया है । देखना बहुत शीघ्र वह पुनः राजगृही का शासक सम्राट बनेगा । " भातृमित्र ने अपने मामा को समझाने हेतु चिलातपुत्र के विषय में अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन किया ।
नहीं भातृमित्र यह संभव नहीं । मैं जानता हूं कि चिलातपुत्र हिंसक शिकारी, शराबी, व्यभिचारी एवं दुष्ट प्रकृति का है । वह राजगृही का दुश्मन है ।
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