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Xxxxxxxx परीषह-जयीxxxxxxxx है ? क्या स्वास्थ्य प्रतिकूल है ? क्या व्यापार में कुछ कमी आई है ? " सुकोशल के चेहरे की गंभीरता एवं मौन देखकर माँ जयवती ने प्रश्नों की बौछार ही कर दी। उसे एक अज्ञात भय भी सता रहा था।
"प्राणनाथ! आप के प्रफुल्लित चेहरे पर आज यह पतझड़ की उदासी क्यों है ? क्या हमारे किसी व्यवहार से दुखी हैं" पत्नियाँ भी प्रश्न करके उसका मुख निहार रही थीं।
"प्रिय... आपका वारिस मेरे गर्भ में पल रहा है। आप उसका ध्यान कर बतायें कि क्या बात है?" सुभद्रा ने अनुनय किया।
"माँ! मेरी प्रिय अर्धांगिनी!!" मैं उदास भी हूँ और नहीं भी हूँ। व्यापार में घाटा भी हुआ है और नफा भी। मैं स्वस्थ भी हूँ और बीमार भी! सुकोशल ने पहले बुझाई।
"बेटा! पहेली मत बुझाओ। साफ साफ कहो कि क्या बात है?" "माँ मैं अभी पूज्य मुनिराज के दर्शन करके आ रहा हूँ।" "जरूर उस ढोंगी-नंगे ने तुम्हें बरगलाया है।" जयावती का क्रोध फुफकार
उठा।
___ "ऐसा मत कहो माँ! वे ढोंगी नहीं ... सिद्ध पुरूष हैं। ज्ञानी- ध्यानी हैं। वे नंगे नहीं पर विषय-भोगों से ऊँचे उठ चुके हैं। मुक्तिमार्ग के पाथिक हैं। सच्चे ज्ञानी व चरित्र के भंडार हैं।'' मैं उदास इसलिए हूँ कि मैं इतनी उम्र तक सत्य को जान ही नहीं पाया। भोग-विलास में ही फँसा रहा। मधुबिन्दु रूपी भोग के मोह में सच्चे धर्म को जान ही नहीं पाया। और प्रसन्न इसलिए हूँ कि आज मुझे आत्मा का ज्ञान हो गया है। सत्यासत्य की विवेक दृष्टि प्राप्त हुई है। शेषजीवन में आत्मसाधना का अवसर मिलेगा यही मेरी प्रसन्नता का कारण है। अभी तक भोगों का व्यापार किया तो वास्तव में घाटे का ही सौदा रहा। अब योग का आत्म व्यापार कर नफा कमाऊँगा। मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्तकर समृद्ध बनूँगा। माँ ! मैं बीमार हूँ क्योंकि सदा काम की मार से पीड़ित रहा। और अब पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करूँगा क्योंकि अब मुझे *
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