________________
xxxdoktr परीषह-जयीxxxxxxxxx
रहा हूँ ।" सुकुमाल ने दृढ़ता से कहा ।
"बेटा, तुम्हारी ये बत्तीस सुकुमार पत्नियां तुम्हारे विरह को कैसे सहन करेगी ?"
"माँ , विरह और प्रेम ये सब मोह के परिणाम हैं । मिलना औप बिछड़ना यह संयोग है । आप और ये सभी परम जैन धर्म का अनुशरण करें और आत्मा की उन्नति करें ।" इतना कहकर सुकुमाल घर से बाहर नंगे पांव निर्वस्त्र निकल पड़े।
__ बाहर अपार जनसमूह ने देखा युवा मुनि सुकुमाल को । जिन लोगो ने उसकी सुकुमारता और वैभव की बातें सुनी थी आज उसके इस त्याग पूर्ण मुनिरूप को देखने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें । सुकुमाल के चेहरे की दिव्यता ,शरीर का सौन्दर्य ,झुकी हुई आँखे ऐसा भासित कर रहा था,मानो कामदेव ने स्वयं वैराग्य धारण किया हो । लोगों के मुख से एक ही ध्वनि निकल रही थी । "मुनि सुकुमाल की जय हो,जैन धर्म की जय हो ।" आकाश इन जयघोषों से गूज रहा था ।
राज वैभव को तृणवत त्यागकर ,भोगविलास को तिलांजलि देकर ,पत्नियों का प्यार और माँ की ममता ते मोह से मुक्त होकर समस्त जन समुदाय को अंतिम जुहार कर मुनिवेशधारी मुनि सुकुमाल मुक्ति के पथ पर बढ़े जा रहे थे । एक जन्म के मुनि जिनधर्म विरोधी वायुभूति आज उसी जिनधर्म के मार्ग पर मुनि बनकर प्रयाण कर रहे थे । मखमल में भी चुभन महसूस करने वाले सु कोमल पांवों को
आज धरती के कंकड़ पत्थर भी चुभन नहीं दे पा रहे थे । दीपक की लौ से तिलमिला उठने वाली आँखें आज सूर्य के प्रखर तेज को सहन कर रही थीं । कीमती आभूषणों और वस्त्रों से विभूषित एवं सुगंधित कीमती लेपों से लेपित देह आज निर्वस्त्र थी । ठंडी गर्मी का प्रभाव ही जैसे लुप्त हो गया था । विराग के सामने राग परास्त हो गया था । योग ने भोग को हरा दिया था । आज उसे कोई भी आकर्षण बांधने में असमर्थ था ।
"मेरी आयु के तीन ही दिन शेष है । अरे मैंने जीवन के इतने वर्ष पानी में ही बहा दिए ।" इसी चिंतन के साथ आत्माका परमात्मा से मेल कराने वे प्रगाढ़ वन की ओर बढ़े जा रहे थे ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org