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Xxxxxxxx परीषह-जयीxxxxxxxxxx पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी । " अवधिज्ञान से ज्ञात कर महाराज ने जयावती को आशीर्वाद दिया ।
जयावती इस आशीर्वाद से गद् गद् हो गई । वर्षों की संचित अभिलाषा उसे अंकुरित होते दिखाई दी । आज वह इतनी प्रसन्न थी कि उसके पांव में मानों पंख लग गये थे।
जयावती ने घर आकर यह समाचार अपने पति सिद्धार्थ एवं अपनी अन्य ३१ बहनों को सुनायें । सबके हर्ष का पार न रहा । सिद्धार्थ को लगा कि उनके कुल में दीपक जलेगा।
सिद्धार्थ सेठ की हवेली में आज दीपमालिका की सी जगमगाहट थी । पटाखे फोड़े जा रहे थे । मिठाईयाँ बाटी जा रही थीं । पूरे नगर के गरीबों को भोजन वस्त्र बाँटे जा रहे थे । गीत-संगीत की सुरावली से वातावरण गूंज रहा था। आज का यह शभदिन सेठानी जयावती के पत्र जन्म के कारण इस हवेली को प्राप्त हुआ था । सेठानी के गर्भ से पुत्र रत्न ने जन्म लिया था । चाँद का टुकड़ा ही जैसे जयावती के गर्भ से अवतरित हुआ था । बालक के नाकनक्श सुन्दर, मनोहरी और वर्ण गौरववर्ण था । पुत्र जन्म का समाचार सभी को प्रफुल्लित कर रहा था । सोहर के गीतों से शौरमृत भी गूंज उठा था । जयावती को आज जैसे दुनिया का सबसे बड़ा धन प्राप्त हो गया था । उसे आज नारी जीवन की सार्थकता का अनुभव हो रहा था । वात्सल्य भाव की लहरें उसके हृदय सागर में उठ रही थीं । दास दासियाँ अपना इनाम पाकर दुआ दे रहे थे । बालक के ग्रह-नक्षत्र देखे गये । उसका नाम सुकोशल रखा गया । __जब सारी हवेली आनंद में डूबी थी । पुत्र जन्म की खुशी के स्वर गूंज रहे थे । उस समय सेठ सिद्धार्थ कुछ और ही सोच रहे थे । यद्यपि वर्षों से उनका मन भोगों से ऊब रहा था । वे आत्मा के चिर सुख के आकांक्षी बन रहे थे । उनका मन बार-बार संसार के भोग-विलासों को त्याग कर जिनेश्वरी दीक्षा के लिए तैयार हो रहा था । वे वैसे तो घर में भी त्यागी से ही रहते थे । देह में भी विदेह से थे । पर उन्हें अब घर में बेचैनी सी होने लगी थी । आज वे भी प्रसन्न थे । उन्हें लगा कि अब वह सुयोग आ गया । जिसकी उन्हें प्रतीक्षा थी । आज तक उन्हें यह चिंता
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