Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 13
________________ ( १२ ) के लिए अत्यन्त आवश्यक और हितकर है। ___ इन दोनों में सुख है केवल पोषक । दुःख है बोधक। सुख जीवनरूपी महासागर पर तैरना सिखाता है, दुःख उस महासागर में डुबकी लगाकर अन्दर से महान तत्वरूपी मोती लाने की कला और हिम्मत देता है । किसी मनीषी ने जब यह कहा, “सर्व दुःख मनीषिणां," तब उसने दुःख से भागना नहीं सिखाया। मैंने तो माना है कि सुख मनुष्य को छिछला बना सकता है, मोह में फंसा सकता है । जीवन को समझने की बुद्धि और जीवन जीने की हिम्मत दुःख से ही हमें मिलती है । इस वास्ते मैंने कहा, "दुःखं सत्यं, सुखं माया; दुःखं जन्तोः परं धनम् ।" __ मरण-जैसे परम सखा के साथ अगर सुख जोड़ दिया जाता तो मरण की प्रतिष्ठा कुछ न रहती। महात्मा मरण के साथ महात्मा दुःख को ही गोड़ देना उचित है। जो हो, मरण का चिंतन पाठकों के सामने पेश करना मैंने मनुष्यजीवन की उत्तम सेवा मानी है । सन् १९६२ से लेकर सन् १९६७ तक के काल में लिखे गए लेखों का यह संग्रह है । इसलिए इसमें कहीं-कहीं पुनरुक्ति का होना स्वाभाविक है। किन्तु मैंने यह पुनरुक्ति रहने दी है, ताकि मैं मृत्यु विषयक अपनी बात पाठकों को भारपूर्वक बार-बार समझा सकूँ । मैंने जो यहां दिया है, उसमें मौलिकता का दावा भी है। ___ मैंने अपने इस भव का जीवनकाल ज्यादातर समाप्त कर लिया है। जो थोड़ा बचा है, उसके बारे में मुझे चिंता नहीं है । जिस चिंतन ने मुझे सन्तोष दिया है, उसका उपभोग इष्टजनों के साथ करना जरूरी था। -काका कालेलकर

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