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( ३ ) गुरवत में हो अगर हम रहता है दिल वतन में। समझो हमें वहीं यह दिल हो जहां हमारा ॥ परबत वो सबसे ऊचा हमसाया आतमा का। वो “सन्तरी हमारा वो पासवां हमारा ॥ गोदी में खेलती है जिसके हजारों नदियां । गुलशन है जिसके दम से रस्के जीना हमारा ॥ ऐ श्राव रोदे गंगा वह दिन है याद मुझको । उतरा तेरे किनारे जा कारवां हमारा ॥ मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। हिन्दी है हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा ॥ यूनान मिश्र रोमा सब मिट गये जहां में । अब तक मगर है बाकी नामो निशा हमारा ॥ कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं मिटाये। सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमा हमारा ॥ 'इकबाल' कोई मरहम अपना नहीं जहां में । मालूम क्या किसी को दर्दे निशां हमारां ॥
मेरी भावना जिसने राग द्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया है बुद्ध वीर जिन हरिहर ब्रह्मा या उनको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो ॥
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