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( १२ ) इस तन धन की कौन बडाई । देखत नयनों से मिट्टी मिलाई ॥
प्रार्थना निराकार है या कि साकार है। गुणागार या निर्गुणागार है ॥ निराधार का जो कि आधार है ।
उसे ही हमारा नमस्कार है ॥१॥ सभी ज्ञान का जो कि आगार है । दया दान का जो कि भंडार है ॥ मिटाता सदा जो अहंकार है ।
उसे ही हमारा नमस्कार है ॥२॥ नदी सिन्धु आकाश तारे बडे । तथा अम्न बतला रहे हैं खडे ॥ कि नीला उसी का ये विस्तार है।
उसे ही हमारा नमस्कार है ॥३॥ सुसौंदर्य जो पुण्य का सत्व है । सु प्रानन्द जो प्रेम का. तत्व है । जिस का यहीं सत्य प्राकार है।
उसे ही हमारा नमस्कार है ॥४॥
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