Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 46
________________ ( २५ ) उत्थान हो ! सम्मान हो ॥ हे प्रभु इस देश का ' हे प्रभु इस देश का सब भांति से सभ्य देशों में हमारा मान हो हम न त्यागे सत्य ण्थ सत मार्ग में विचरान हो । मातृभूमि के मान का हर वक्त हम को ध्यान हो ॥ यदि कभी मर कर हमें फिर जन्म लेना ही पडे । वो हमारी मातृभू यह देश हिन्दोस्तान हो ॥ बन्धुगणों मिल कहो - बन्धुगणों मिल कहो प्रेम से, अजित सम्भव आदिनाथ । मुदितवत से घोष करो, पुनि पद्म अभिनन्दन सुमतिनाथ ॥ जिव्हा जीवन सफल करो कह, सुविधि चन्द्र सुपार्श्वनाथ । हृदय खोल बोजो मत चूको, अनन्त श्रेयांस और शीतलनाथ ॥ रक्त रुचिर वासुपूज्य मनोहर, धर्म विमल अरु शांतिनाथ । अनुगत कांचन रक्त वर्ण के कुन्धु अरह व मल्लिनाथ ॥ उभय श्यामतन कांचन वारे नेमि नमि मुनि सुव्रतनाथ । परम रक्त निष्काम शिरोमणि जय श्री विषहर पार्श्वनाथ ॥ प्रति उमंग से बोलो प्यारे, वर्धमान श्री अन्तिम नाथ ॥ जैन धर्म की फतह पुकारो जय श्री सिद्धाचल गिरनार ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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