Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 78
________________ (५७) ____ भवि भावे देरासर.. भवि भावे देरासर आश्रो जिनन्दवर जय बोलो । पछी पूजन करी शुभ भावे हृदय पट खोलो ने ॥ साखी शिवपुर जिन थी मांगजो, मांगी भव नो अन्त । लाख चौरासी वार वा क्या रे थई शुं अमे प्रभु सन्त रे ॥ भवि इम बोलो ने भवि भावे ॥१॥ मोंधी मानव जिन्दगी मेंांघो प्रभु नो जाप । जपी चित्त थी दूरे करो तमे कोटि जन्म रा पाप रे ॥ हृदय पट खोलो ने भवि भावे ॥ २ ॥ तू के म्हारो सायबो हूं छू थारो दास । दीनानाथ मुझ पाली ने श्रापोने शिवपुर वास रे ॥ हृदय पट खोलो ने भवि भावे ॥ ३ ॥ छाणी गाम नो राजियो नामे शांति जिनन्द । प्रात्म कमल मां ध्यावतां शुद्ध मले लब्धि नो घृन्द रे ॥ - हृदय पट खोलो ने भवि भावे ॥ ४॥ हे नाथ मोरी नैया हे नाथ मोरी नय्या उस पार लगा देना । अब तक तो निभाया है अब और निभा देना ॥ दन बल के साथ माया घेरे जो मुझे आकर । तो देखते न रहना झट पट ही बचा लेना ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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