Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 83
________________ (६२) प्रास्म कमल मां सिद्धगिरि ध्याने । जीवन मलशे केवल शाने ॥ लब्धिसूरि शिवधाम जिनने लाखों प्रणाम जिमने लाखों प्रणाम । जनारूं जाय छे जीवन । जनारूं जाय के जीवन जरा जीवन ने जपतो जा । हृदय मां राखी जिनवर ने पुराणो पाप धोतो जा ॥ बनेलो पाप थी भारे बली पाप कटे शिद ने । सलगती होली हैया नो अरे जालिम बुझातो जा ॥ दया सागर प्रभु पारस उछाले ज्ञान की छोलो । उतारी वासना वस्त्रों अरे पामर तू न्हातो जा ॥ जिगर मां डंखता दुखो थया पापे पिछानी ने । जिनन्दघर ध्यान नी मस्ती वडे एने उडातो जा ॥ अरे प्रातम बनी साणो बतावी शाणपण हारूं । हठावी मूठी जग माया चेतन ज्योति जगातो जा ॥ खिल्या जो फूलडा प्राजे जरूरे ते काले कर मासे । प्रखण्ड प्रातम कमल लब्धि तणी लय दिल लगातो जा ॥ अनारूं जाय के जीवन जरा जिनवर ने जपतो ना । वासुपूज्य विलासी बासुपूज्य विलासी, चम्पा ना वासी, पूरो हमारी प्रास ॥ करूं पूजा हूं खासी, केसर पासी, पुष्प सुवासी पूरो अमारी भास। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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