Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 93
________________ मनोहर--सुपके चुपके जुश्रा जो खेले पकड ले सरकार। जूत जमावे इजत जावे घर में होवे तकरार ॥ मत । भूपेन्द्र- जिधर जावे मौज उडावे खावे मस्त हो माल । कमाई वगैरह कभी न करते चले अमीरी चाल ॥ जरा ॥ मनोहेर- जिधर जावे धक्के खाबे करे न कोई विश्वास । पैसे गये बाबांजी बन गये हुए ठनठनगोपाल ॥ मत । भुपेन्द्र- फैशन मेरी देख निराली बना हुआ हूं बाबू । . बिस्कुट खाऊ सोडा पिऊ पान हमेशा चाबू ॥ जरा ॥ मनोहर- अरे इज्जत तेरी चोरों जैसी कोई न करे विश्वास । लुश्चे लफंगे भगेडू और दोस्त तेरे बदमाश ॥ मत ॥ भुपेन्द्र- नसीहत मानूं आज तुम्हारी लानत इस जुवारी पर । सुनने वाले प्रांखे खोला धिक्कार मुझे अविचारी पर । ( दोनों) सट्टा सौदा माल मंसूबा और शरत इकरारी पर । लानत लफंगे नशेषाज और परनारी भरतारों पर । बीडी सिगरेट चुरुट गांजा औ चिलमें खूब करारी पर । निन्दाखोरों दगाबाजों और कन्या बेचनहारों पर ॥ झूठा दावा दूणा ले कर गरीब सतावन हारों पर । कहे 'फतह' सुनो सब सजन लानत उन मक्कारों पर ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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