Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 96
________________ पांच रुपया नी रेजगी लाव्या पावली खोवा गई । एक रुपया नी रबडी लान्या घाही दुली गई ॥ एम बैठी ने होरवालागा थापड लागी गई । एक तो मारा भाईजी दीधी दूजी दीधी बाई ॥ रामचन्द्रजी तीर चलाव्यो हरणी मरी गई। एम करी ने दौडवा लागा सीता हरी गई ।। समरो न अमरा भई समरो न अमरा भई । सब नार हतीत थई समरो न अमरा भई ॥ पेट्र प्रार्थना हम पेटुओं की ओर भी भगवान तेरा ध्यान हो । हो दूर राशन की व्यवस्था प्राप्त निज पकवान हो ॥ हम मिष्ट भोजी वीर वन कर स्वादु भोजन नित करें। हमको हमारी स्वाद प्रेमी जीभ पर अभिमान हो ॥ हम चाहते हैं बस यही मिलता रहे सीरा पुडी । खीर मोहन भोग लाडू नुकतियों से मान हो ॥ होवे बडे भी साथ में अरु रायता तैयार हो । दिल में हमारे पेट सेवा का भरा अरमान हो ॥ होवे कचौडी की कभी जब मांग प्यारी जीभ को । थान में रक्खे प्रथम ऐसा गुणी यजमान हो ॥ संसार में 'सिरमोर' हो कर पेट हम से कह सके । हे वीर पेटू धन्य तुम रखते सदा मम ध्यान हो ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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