Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 110
________________ (८६ ) कहा भरोसो देह को विनसि जाइ छिन मांहि । श्वास श्वास सुमिरन करो और जतन कछु नाहिं । अरब खरब लौं द्रव्य है उदय अस्त लौं राज । तुलसी जो निज मरण है भावे केहि काज . सत्य वचन अधीनता परतिय मात समान । इतने में प्रभू ना मिले तुलसीदास जमान ॥ प्रभू महावीर का उपदेश तथा जैनों के पांच महा व्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह किसी जीव को न मारो झूठ, मत बोलो, चोरी न करो, व्यभिचार न करो अधिक वस्तु संग्रह न करो ॥१॥ सभी जीवों पर समान भाव रक्खो, छूतकात न करो, किसी की निन्दा न करो, अपने दोष न छिपाओ, सब पर दया करो, दुख में सहायता करो, श्रालस्य न करो, जुआ सट्टा न खेलो ॥२॥ जीव कर्मानुसार सुख भोगता है, एवं धनी, निरोगी, यशश्वी वैभवशाली होता है परन्तु पाप का उदय होते ही यह सब सुख नष्ट हो जाते हैं इसमें ईश्वर का दोष नहीं है ॥३॥ मनुष्य जन्म व्यर्थ न खोयो वरना पछताओगे, देव, नरक या पशु पत्ती की योनि में साधना न होगी मौत तण २ में पास पा रही है, अरे चेतो चेतो धर्म वृत्त के सहारे मोक्ष महल में जा पहुंची ॥ ४॥ महावीर प्रभू राजा के पुत्र थे, मुखी परिवार के थे परन्तु संसार के दुखों को दूर करने के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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