Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 108
________________ ( ७ ) र्भवैर्यन्त्य हो ॥ ८ ॥ नो रोगा नैव शोका न कलह कलना नारि मारि प्रचारा, नैव्याधि समाधिन च दरदुरिते दुष्ट दारिद्रतानो नो शाकिन्यो ग्रहानो न हरिकरिंगणा व्याल वैताल जाला, जायन्ते पार्श्व चिन्तामणि मति वशतः प्राणिनां भक्तिभाजाम् ॥६॥ गीर्वाण द्रम धेनु कुम्भमणयस्तस्यांकणे रंगिणो, देवा दानव मानवा सविनयं तस्मै हितं ध्यायिनः । लक्ष्मीस्तस्य यशा वशेव गुणीनां ब्रह्मांड संस्थायिनी, श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मनिशं संस्तौतियो ध्यायते ॥ १०॥ इति जिनपति पार्श्वः, पार्श्व पाख्यि यक्षः प्रदलित दुरितौघः प्रीणितः प्राणिसार्थः । त्रिभुवन जन वांछा दान चिन्तामणिकः, शिवपद दरु बीज बोधि बीजं ददातुः ॥ ११ ॥ श्री जैन धर्मशाला स्टेशन चित्तौड में लिखे हुए उपदेश प्रद दोहे व श्लोक गौ धन गज धन वाजि धन और रतन धन खान । जब प्रावे सन्तोष धन सब धन धूलि समान ॥ काम क्रोध मद लोभ की जब लग घर में खान । कहा मूरख कहा पंडिता दोनों एक समान ॥ सांच घराबर तप नहीं मूंठ बराबर पाप । जा के हिरदै सांच है ता के हिरदै पाप । रात गवाई सोय कर दिवस गवायो खाय । हीरा जनम अमोल था कौडी बदने 'जाय । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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