Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ ( ६० ) विचार से सर्व त्यागी बन अनेक कष्ट परिषह सहन कर । केवलज्ञानी हो जीवों को तार कर मोक्षगामी हुवे ॥ ५॥ . जीव अजीव के भेद को समझो, अपने स्वार्थ के लिये स्वाद के लिये जल थल के मूक जीवों को अजीव न गिनो उन्हें मार कर न खाओ, पानी छान कर पीयो, रात को न खाओ, संसार सराय है चन्द रोज के लिये यहां लम्वे पैर मत फैलामो ॥ ६ ॥ समय अमूल्य धन है व्यर्थ न खोओ फिर नहीं पायगा बेकार मत रहो, कु. विचार आयेंगे, सत्कार्य में संलग्न रहो, बिना काम बिना पूछे बिना बुलाये कहीं न जाओ अपमान होगा, ईमानदारी श्रात्म विश्वास पूर्ण ज्ञानदत्तता में सफलता है ॥ ७ ॥ नीची दृष्टि से चलो छोटे २ जीव जन्तु दव न जाय तथा ठोकर न खायो, कडवी गात मुंह से न बोलो एवं चुगली न खायो, अति परिचय न बढायो झगडा होगा चञ्चल मन को, पांचों इन्द्रियों को तप द्वारा वश में रखो ॥८॥ ब्रह्मचर्य में अनन्त शक्ति है इसका पालन करने वाला वसति ( गांव ) राग कथा, पाराम श्रासन (शैया ) अंगोपांग निरीक्षण, परदे की पोट से काम कथा श्रवण पूर्व भोंग चिन्तन मधुर भोजन अति मात्रा प्राहार ( लघु शंका अधिक हो) श्रृंगारे विभूषण का त्याग करे ।। ६ ॥ रानि को सोने से पहिले प्रात्म निरीक्षण करो, राग द्वष, क्रोध, मान, माया, लोभ रहित हो पापों का प्राय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120