Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 112
________________ ( १ ) श्चित करो । सब जीवों से क्षमा मांग कर प्रभु का स्मरण कर निर्मल शुद्ध हो जाओ । सुबह जिन्दा रहो या न रहो इसका क्या भरोसा? आशा नाम नदी मनोरथजला तृष्णा तरंगाफुला । राग ग्राहवती वितर्क विहगा धैर्य द्रुम ध्वंसिनी ॥ मोहावर्त सुदुस्तगति गहना प्रोतुंग चिन्ता तटी । तस्याः पारगता विशुद्ध मनतो नंदति योगीश्वराः ॥ इस्तो दान विवर्जितो श्रुति पदौ सारस्वत द्रोहियो । नेत्रे साधु विलोकनेन रहिते पादौ न तीर्थ गतौ ॥ अन्यायार्जित वित्त पूर्गा मुदरं गर्वेण तुगं शिरौ। रे रे जंबुक मुञ्च मुञ्च महसा नीचं सुनिद्य वपुः ।। गत्रिर्गमिप्यति भविष्यति सुप्रभात, भाषानुदेप्यति हसिष्यति पंकज श्रीः । इत्थंविचिन्त्ययति कोषगते द्विरेफे, हा हन्त हन्त नलिनि गज उज्जहार ।। धैर्य यस्य पिता तमा च जननी शांतिश्चिरं गेहिनी सत्यं सनुरयं दया च भगिनी भ्राता मन संयमः । शय्याभूमितलं दिशोऽपि वसन ज्ञानामृतं भोजनम् ॥ मेते यस्य कुटुम्बिनो वद सखे कस्माद्यं योगिनः ॥ श्री रत्नाकर पच्चीसी मंदिर छो मुक्ति नणा मांगल्य क्रीडा ना प्रभू । ने इन्द्र नर ने देवता सेवा करे तारी प्रभू ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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