Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 117
________________ अथवा नकामुं आप पाशे नाथ शृं बकवू घणु । हे देवता ना पूज्य ! प्रा चारित्र मुझ पोता तणू ॥ जाणो स्वरूप प्रण लोक ना तो माहरु शू मात्र प्रा ? ज्यां क्रोड नो हिसाब नाहि त्यां पाई नो वात क्या । हारा थी न समर्थ अन्य दीन नो उद्धारनारो प्रभू । म्हारा थी नहीं अन्य पात्र जगत मां जोतां जडे हे विभु ॥ मुक्ति मंगल स्थान तोय मुझने इच्छा लक्ष्मी तणी । प्रापो सम्यग्रत्न श्याम जीवने तो तृप्ति थाये घणी ॥ अरे मन छन में ही उठ जाणो र मन छन ही में उठ जाणो । ई रो नी है ठोड ठिकाणो अरे मन छन ही में उठ जाणो ॥ साथे कई न लायो पेली नी साथे अब प्राणो। वी वी आय मलेगा आगे जी जी कर्म कमाणो ॥ १ ॥ सौ सौ जतन करे ई तन रा पाखर नी आपांणो । करणो व्हे सो कर ले प्राणी पछे पडे पछताणो ॥२॥" दो दिन रा जीवा रे खातर क्यू अतरो अँठाणो। हाथां में तो कई न पायो वातां में बहकाणो॥३ कणी सीम पर गाम बसावे कणी नीम कमठाणो। . ई तो पवन पुरुष रा मेला चातुर भेद पिछाणो ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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